Friday, 28 March 2025

नाम दान

तब  कबीर  अस कहेवे लीन्हाज्ञानभेद सकल कह दीन्हा ।।
धर्मदास   मैं  कहो   बिचारीजिहिते निबहै सब संसारी ।।
प्रथमहि शिष्य  होय जो आईता कहैं पान देहु तुम भाई ।।1।।
जब देखहु तुम  दृढ़ता  ज्ञानाता  कहैं  कहु शब्द प्रवाना ।।2।।
शब्द मांहि जब निश्चय आवैता कहैं ज्ञान अगाध सुनावै ।।3।।


बालक   सम  जाकर  है  ज्ञाना । तासों  कहहू  वचन    प्रवाना ।।1।।
जा  को  सूक्ष्म   ज्ञान   है  भाई । ता  को  स्मरन   देहु  लखाई ।।2।।
ज्ञान   गम्य  जा  को पुनि  होई । सार  शब्द जा को  कह  सोई ।।3।।
जा को होए दिव्य ज्ञान परवेशा । ताको कहे तत्व ज्ञान उपदेशा ।।4।।


कबीर सागर में अमर मूल बोध सागर पृष्ठ 265

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