Friday, 28 March 2025

आदि रमैनी (गरीबदास)

आदि रमैनी (गरीबदास)

आदिरमैनी अदली साराजा दिन होते धुंधकारा।
सतपुरुष कीन्हा प्रकाशाहम होते तखत कबीर खवासा।

मनमोहिनी सिरजी मायासतपुरुष एक ख्याल बनाया।
धर्मराय सिरजे दरबानीचौसठ जुग तप सेवा ठानी।

पुरुष प्रथ्वी जाकू दीनीराज करो देवा आधीनी।
इकीस ब्रह्माण्ड राज तुम दीन्हामन की इच्छा सब जुग लीन्हा।

मायामूल रूप एक छाजामोहि लिये जिनहू धर्मराजा।
धर्म का मन चंचलचित धारामन माया का रूप विचारा।

चंचल चेरी चपल चिरागाया के परसे सरबस जागा।
धर्मराय किया मन का भागीविषय वासना संग से जागी।

आदिपुरुष अदली अनरागीधर्मराय दिया दिल से त्यागी।
पुरुष लोक से दिया ढहाहीअगम दीप चल आये भाई।

सहजदास जिस दीप रहंताकारण कौन कौन कुल पंथा।
धर्मराय बोले दरबानीसुनो सहज दास ब्रह्मज्ञानी।

चौंसठ जुग हम सेवा कीन्हीपुरुष प्रथ्वी हम कू दीन्ही।
चंचलरूप भया मन बौरामनमोहिनी ठगिया भौंरा।

सतपुरुष के ना मन भायेपुरुष लोक से हम चलि आये।
अगरदीप सुनत बङभागीसहजदास मेटो मन पागी।

बोले सहजदास दिल दानीहम तो चाकर सत सहदानी।
सतपुरुष से अरज गुजारूँजब तुम्हार बिवाण उतारूँ।

सहजदास को कीया पयानासत्यलोक को लिया परवाना।
सतपुरुष साहिब सरबंगीअविगत अदली अचल अभंगी।

धर्मराय तुम्हरा दरबानीअगरदीप चलि गये प्रानी।
कौन हुकुम करी अरज अवाजाकहाँ पठावो उस धर्मराजा।

भई अवाज अदली एक सांचाविषयलोक जा तीन्यू बाचा।
सहज विमान चले अधिकाईछिन मा अगरदीप चलि आई।

हम तो अरज करी अनरागीतुम विषयलोक जावो बङभागी ।
धर्मराय के चले विमानामानसरोवर आये प्राना।

मानसरोवर रहन न पायेदरै कबीर थाना लाये।
बंकनाल की विषमी बाटीतहाँ कबीरा रोकी घाटी।

इन पाँचों मिल जगत बँधानालख चौरासी जीव संताना।
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर मायाधर्मराय का राज पठाया।

योह खोखापुर झूठी बाजीभिसति बैकुण्ठ दगा सी साजी।
क्रतिम जीव भुलाने भाईनिजघर की तो खबर न पाई।

सवा लाख उपजें नित हँसाएक लाख बिनसे नित अंशा।
उत्पति खपति प्रलय फ़ेरीहर्ष शोक जोरा जम जेरी।

पाँचों तत्व है प्रलय माहींसतगुण रजगुण तमगुण झांई।
आठों अंग मिली है मायापिण्ड ब्रह्माण्ड सकल भरमाया।

या में सुरत शब्द की डोरीपिण्ड ब्रह्माण्ड लगी है खोरी।
स्वांसा पारस गहि मन राखोखोल कपाट अमीरस चाखो।

सुनाऊँ हँस शब्द सुन दासाअगम दीप है अंग है वासा।
भवसागर जम दण्ड जमानाधर्मराय का है तलबाना।

पाँचों ऊपर पद की नगरीबाट विहंगम बंकी डगरी।
हमरा धर्मराय सों दावाभवसागर में जीव भरमावा।

हम तो कहें अगम की वानीजहाँ अविगत अदली आप बिनानी।
बन्दीछोङ हमारा नामअजर अमर है स्थीर ठांम।

जुगन जुगन हम कहते आयेजमजौरा से हँस छुटाये।
जो कोई माने शब्द हमाराभवसागर नहीं भरमे धारा।

या में सुरत शब्द का लेखातन अन्दर मन कहो कीन्ही देखा।
दास गरीब अगम की वानीखोजा हँसा शब्द सहदानी।

माया आदि निरंजन भाईआपै जाये आपै खाई।
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर चेलाओऽहम सोऽहं का है खेला।

शिखर सुन्न में धर्म अन्यायीजिन शक्ति डायन महल पठाई।
लाख ग्रास नित उठ दूतीमाया आदि तखत की कूती।

सवा लाख घङिये नित भांडेहँसा उतपति प्रलय डांडे।
ये तीनों चेला बटपारीसिरजे पुरुषा सिरजी नारी।

खोखापुर में जीव भुलायेस्वपना बहिस्त बैकुण्ठ बनाये।
यो हरहट का कुआ लोईया गल बँधया है सब कोई।

कीङी कुंजर और अवताराहरहट डोरी बँधे कई बारा।
अरब अलील इन्द्र हैं भाईहरहट डोरी बँधे सब आई।

शेष महेश गणेश्वर ताहीहरहट डोरी बँधे सब आहीं।
शुक्रादिक ब्रह्मादिक देवाहरहट डोरी बँधे सब खेवा।

कोटिक कर्ता फ़िरता देखाहरहट डोरी कहूँ सुन लेखा।  हरहट रहट
चतुर्भुजी भगवान कहावेहरहट डोरी बँधे सब आवे।

यो है खोखापुर को कुआया में पङा सो निश्चय मुआ।

माया काली नागिनीअपने जाये खात।
कुण्डली में छोङे नहींसौ बातों की बात।

अनन्त कोटि अवतार हैंमाया के गोविन्द।
कर्ता हो हो अवतरेबहुर पङे जग फ़ँद।

ब्रह्मा विष्णु महेश्वर मायाऔर धर्मराय कहिये।
इन पाँचों मिल प्रपंच बनायावाणी हमरी लहिये।

इन पाँचों मिल जीव अटकायेजुगन जुगन हम आन छुटाये।
बन्दीछोङ हमारा नामअजर अमर स्थीर है ठाम।

पीर पैगम्बर कुतुब औलियासुर नर मुनिजन ज्ञानी।
ये ताको राह न पायाजम के बँधे प्रानी।

धर्मराय की धूमा धामीजम पर जंग चलाऊँ।
जोरा को तो जान न दूँगाबाँध अदल घर लाऊँ।

काल अकाल दोऊ को मोसूँमहाकाल सिर मूँङूँ।
मैं तो तखत हजूरी हुकुमीचोर खोज के ढूँङूँ।

मूलमाया मग में बैठीहँसा चुन चुन खाई।
ज्योतिस्वरूपी भया निरंजनमैं ही कर्ता भाई।

सहस अठासी दीप मुनीश्वरबँधे मुला डोरी।
एत्या में जम का तलबानाचलिये पुरुष की शोरी।

मूला का तो माथा दागूँसत की मोहर करूँगा।
पुरुष दीप को हँस चलाऊँदरा न रोकन दूँगा।

हम तो बन्दी छोङ कहावाधर्मराय है चकवे।
सतलोक की सकल सुनावावाणी हमरी अखवे।

नौ लख पट्टन ऊपर खेलूँसाहदरे कू रोकूँ।
द्वादश कोटि कटक सब काटूँहँस पठाऊँ मोखूँ।

चौदह भुवन गमन है मेराजल थल में सरबंगी।
खालिक खलक खलक में खालिकअविगत अचल अभंगी।

अगर अलील चक्र है मेराजित से हम चल आये।
पाँचों पर परवाना मेराबाँध छुटावन्न धाये।

जहँ ओऽम ओंऽकार निरंजन नाहींब्रह्मा विष्णु वेद नहीं जाँहीं।
जहाँ करता नहीं जान भगवानाकाया माया पिण्ड न प्राणा।

पाँच तत्व तीनों गुण नाहींजोरा काल दीप नहिं जाही।
अमर करूँ सतलोक पठाऊँताते बन्दीछोङ कहाऊँ।

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