Wednesday 3 November 2021

अजहूँ सो पहला दिन

कबीर, कहत सुनत सब दिन गए,
उरझि न सुरझ्या मन।
कही कबीर चेत्या नहीं,
अजहूँ सो पहला दिन।।

हम तौ एक एक करि जाना

कबीर, हम तौ एक एक करि जाना।
दोइ कहैं तिनहीं कौ दोजग जिन नाहिंन पहिचाना ।।
एकै पवन एक ही पानीं एकै जोति समाना।
एकै खाक गढ़े सब भांडै़ एकै कोंहरा साना।।
जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई।
सब घटि अंतरि तूँही व्यापक धरै सरूपै सोई।।
माया देखि के जगत लुभांनां काहे रे नर गरबाना।
निरभै भया कछू नहिं ब्यापै कहै कबीर दिवाना।।

संतो देखा जग बौराना

कबीर, संतो देखत जग बौराना।
साँच कहौं तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना।।
नेमी देखा धरमी देखा, प्रात करै असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ज्ञाना।।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़ै कितेब कुराना।
कै मुरीद तदबीर बतावैं, उनमें उहै जो ज्ञाना।।
आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।।
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।
हिन्दू कहै मोहि राम पियारा, तुर्क कहै रहिमाना।
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मर्म न काहू जाना।।
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।
गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अंत काल पछिताना।
कहै कबीर सुनो हो संतो, ई सब भर्म भुलाना।
केतिक कहौं कहा नहिं मानै, सहजै सहज समाना ।।

कबीर संगति साधु की कटै कोटि अपराध

ऐक घड़ी आधो घड़ी,
आधो हुं सो आध।
कबीर संगति साधु की,
कटै कोटि अपराध।।

भला हुआ जो मेरी मटकी फुटी

कबीर, भला हुआ जो मेरी मटकी फुट गई ,
मैं पनिया भरन ते छूट गई। 

नाता तोड़े हर भजे भगत कहावे सोय

कबीर, जब लग नाता जगत का,
तब लग भगति न होय।
नाता तोड़े हर भजे,
भगत कहावे सोय।।

रूम रूम पिउ पिउ कहै

कबीर, प्रीत जो लागी घुल गई,
पीठ गई मन माहिं।
रूम रूम पिउ पिउ कहै,
मुख की श्रृद्धा नाहिं।।

हरि से भी हरिजन बड़े

कबीर, हरि से भी हरिजन बड़े,
समझ देखि मन माहिं।
कहे कबीर जग हरि दिखे,
तो हरि हरि जन माहिं।।

सब मेरा मैं सबन का

कबीर, मन लागा उस एक से,
एक भया सब माहिं।
सब मेरा मैं सबन का,
तेहा दूसरा नाहिं।।

आठ पहर चौंसठ घड़ी नैना माहिं तू बसे

कबीर, आठ पहर चौंसठ घड़ी,
मेरे और न कोय।
नैना माहिं तू बसे,
नींद को ठौर न होय।।

ऊंचा प्यासा जाय

कबीर, ऊंचे पानी न टिके,
नीचे ही ठहराय।
नीचा होय तो भर पिये,
ऊंचा प्यासा जाय।।

दुखिया दास कबीर

कबीर, सुखिया सब संसार है,
खाए और सोये।
दुखिया दास कबीर है,
जागे और रोये।।

कौन सुहागन पिया बिन

कबीर, हँस हँस कंत न पाया,
जिन पाया तिन रोय।
हंसि खेले पिया बिन,
कौन सुहागन होय।।