बहुत गुरु संसार रहित, घर कोइ न बतावै।
आपन स्वारथ लागि, सीस पर भार चढावै।।
सार शब्द चीन्हे नहीं, बीचहिं परे भुलाय।
सत्त सुकृत चीन्हे बिना, सब जग काल चबाय।।18।।
यह लीला निर्वान, भेद कोइ बिरला जानै।
सब जग भरमें डार, मूल कोइ बिरला माने।।
मूल नाम सत पुरुष का, पुहुप द्वीपमें बास।
सतगुरु मिलैं तो पाइये, पूरन प्रेम बिलास।।19।।
नाम सनेही होय, दूत जम निकट न आवै।
परमतत्त्व पहिचानि, सत्त साहेब गुन गावै।।
अजर अमर विनसे नहीं, सुखसागरमें बास।
केवल नाम कबीर है , गावे धनिधर्मदास।।20।।
कबीर शब्दावली (पृष्ठ नं. 220) से सहाभार
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