Sunday 28 April 2024

Saar Shabd

जो जन होय जौहरी, सो शब्द ले बिलगाय ।
सोहंग सोहंग जप मुआ, वृथा जन्म गवाया ।
सार शब्द मुक्ति का दाता, जाका भेद नहीं पाया ।
सोहंग सोहंग जपे बड़े ज्ञानी, नि:अक्षर की खबर न जानी ।
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धर्मदास मैं तोहि सुझावा, सार शब्द का भेद बतावा ।।
सार शब्द का पावै भेदा, कहै कबीर सो हंस अछेदा ॥
सार शब्द नि:अक्षर आही, गहै नाम तेही संशय नाहीं ॥
सार षड जो प्राणी पावै, सत्यलोक महिं जाए समावै ॥
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काया नाम सबहि गुण गावै, विदेह नाम कोई बिरला पावै ।।
विदेह नाम पावेगा सोई, जिसका सद्गुरु साँचा होई ॥
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शब्द शब्द सब कोई कहे, वह तो शब्द विदेह ।
जिव्हा पर आवे नहीं, निरख परख के लेह ॥
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बावन अक्षर में संसारा, नि:अक्षर वो लोक पसारा ।
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सार नाम सद्गुरु से पवे, नाम डोर गहि लोक सिधावे ।।
सार नाम विदेह स्वरूपा, नि:अक्षर वह रूप अनुपा ।।
तत्व प्रकृति भाव सब देहा, सार शब्द नि: तत्व विदेहा ॥
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सबके ऊपर नाम नि: अक्षर, तहै लै मन को राखै ।
तब मन की गति जानि परै, ये सत्य कबीर भाखै ॥
जब लग ध्यान विदेह न आवे, तब लग जीव भाव भटका खावे ।।
ध्यान विदेह औ नाम विदेहा, दोई लाख पावै मिटै संदेहा ॥
छिन एक ध्यान विदेह समाई, ताकि महिमा वरणी न जाई ॥
काया नाम सबै गोहरावे, नाम विदेह कोई बिरला पावे ॥
जो युग चार रहे कोई कासी, सार शब्द बिन यमपुर वासी ॥
अड़सठ तीरथ भूपरिक्रमा, सार शब्द बिन मिटे न भरमा ॥
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केवल नाम नि:अक्षर आई, नि:अक्षर में रहै समाई ॥
नि:अक्षर ते करै निवेरा, कहे कबीर सोई जन मेरा ॥
अमर मूल मैं बाराँ सुनाई, जिहिते हंसा लोक सिधाई ॥
शब्द भेद जाने जो कोई, सार शब्द में रहे समाई ।।
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चौथे लोक का तब सुख पावै, जब सद्गुरु सार नाम बतावै ।
मन बच कर्म जो नामहि लागै, जनम मरण छूटै भ्रम भागै ॥
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मंत्र यंत्र भ्रम जाल है, अक्ल उक्त से थाप ।
नाम नि:अक्षर शब्द है, सुरति निरति से जाप ॥
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शब्दे शब्दे सब कहै, शब्द लखे नहि कोई ।
सार शब्द जेहि लखि परै, छत्र धनी है सोय ॥
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क्षर अक्षर निरवार के, नि:अक्षर गह सार ।
नि:अक्षर जब पावई, तब ही भाव के पार ॥
अक्षर भेद न जानही, क्षर में सब नर बंद ।
नि:अक्षर जब पावही, तबै मिटे जीव फंद ॥
सिद्ध साधु सब पंचमुए, क्षर के परे झमेल ।
नि:अक्षर जाने बिना, भए काल के चेल ॥
क्षर अक्षर नि:अक्षर बुझे सूझ गुरु परचवे ।
क्षर परहर अक्षर लौलावे, तब नि:अक्षर पावे ॥
बावन अक्षर ध्यावही, ते भव होए न पार ।
नि:अक्षर है का जप करावे, सोई गुरु है सार ॥
सप्त कोटि मंत्र हैं, चित भरमावन काज ।
नि:अक्षर सार मंत्र है, सकाल मंत्र को राज ॥
महा चेतन नि:अक्षर, खंड ब्रहमाण्ड के पार ।
धर्मदास तुम सुमिर के, उतरो भाव जल पार ॥
सत्यनाम की की शोभा, कहानो करो बखान ।
नि:अक्षर जो जानि है, सोई संत सुजान ॥
पिंड ब्रहमाण्ड के पार है, सत्यपुरुष निजधाम ।
सार शब्द जो कोई गहै, लहै तहां विश्राम ॥
कहन सुनन देखन, सब अक्षर में जान ।
गुप्त नि:अक्षर देखो, अंतर दृष्टि समान ॥
संत कोटि बैठे जहां। ज्ञानी लक्ष अनेक ।
सार शब्द में जो रती, सो अनंत में एक ॥

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