सुनता है गुरु ज्ञानी
गगन में आवाज हो रही झीनी-झीनी
पहिले आए आए पहिले आए
नाद बिंदु से पीछे जमया पानी पानी हो जी
सब घट पूरण गुरु रह्या है
अलख पुरुष निर्बानी हो जी ll 1 ll
वहां से आया पता लिखाया
तृष्णा तूने बुझाई बुझाई..
अमृत छोड़सो विषय को धावे,
उलटी फाँस फंसानी हो जी ll 2 ll
गगन मंडलू में गौ भी आनी
भोई से दही जमायाi जमाया…
माखन माखन संतों ने खाया,
छाछ जगत बापरानी हो जी … ll 3 ll
बिन धरती एक मंडल दीसे,
बिन सरोवर जूँ पानी रे
गगन मंडलू में होए उजियाला,
बोल गुरु-मुख बानी हो जी ll 4 ll
ओऽहं सोऽहं बाजा बाजे,
त्रिकुटी धाम सुहानी रे
इडा पिंगला सुषुमना नारी,
सून ध्वजा फहरानी हो जी ll 5 ll
कहत कबीरा सुनो भई साधो,
जाय अगम की बानी रे..
दिन भर रे जो नज़र भर देखे,
अजर अमर वो निशानी हो जी … ll 6 ll
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