सुरत निरत मन पवन कूँ, करो एकत्तर यार।
द्वादस उलट समोय ले, दिल अंदर दीदार॥
तन थिर, मन थिर, बचन थिर,
सुरति, निरति थिर होय।
कहैं कबीर उस पलक को,
कल्प न पावै कोय॥
Surat nirat mann pavan payana,
Shabdae shabd samaayi |
Garib Das galtaan mahal mein,
Miley Kabir gosaayin ||.








