ताहि न यह जग जाने भाई। तीन देव में ध्यान लगाई।।
तीन देव की करहीं भक्ति। जिनकी कभी न होवे मुक्ति।।
तीन देव का अजब खयाला। देवी-देव प्रपंची काला।।
इनमें मत भटको अज्ञानी। काल झपट पकड़ेगा प्राणी।।
तीन देव पुरुष गम्य न पाई। जग के जीव सब फिरे भुलाई।।
जो कोई सतनाम गहे भाई। जा कहैं देख डरे जमराई।।
ऐसा सबसे कहीयो भाई। जग जीवों का भरम नशाई।।
कह कबीर हम सत कर भाखा, हम हैं मूल शेष डार, तना रू शाखा।।
साखी: रूप देख भरमो नहीं, कहैं कबीर विचार।
अलख पुरुष हृदये लखे, सोई उतरि है पार।।
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