Tuesday, 8 July 2025

धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।

धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।यहि कारन मैं कथा पसारा। जगसे कहियो राम नियारा।।

यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवोंका भरम नशाओ।।अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रायदेवनकी उत्पति भाई।।

कुछ संक्षेप कहों गुहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।भरम गये जग वेद पुराना। आदि रामका का भेद न जाना।।राम 

राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।। ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।

माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछेसे माया उपजाई।।

माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।कामदेव धर्मराय सत्ताये। देवी को तुरतही धर खाये।।

पेट से देवी करी पुकारा। साहब मेरा करो उबारा।। टेर सुनी तब हम तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।

सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।

अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।। धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।

धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा। तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।


तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।

पुरुष गम्य कैसे को पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।


तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।।अलख निरंजन सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।


तीन देव सो उनको धावें। निरंजन का वे पार ना पावें।।अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।


 ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।

तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव करत हैं सेवा।।


अकाल पुरुष काहू नहिं चीन्हां। काल पाय सबही गह लीन्हां।।

ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्मको ना पहिचाने।।


तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।

तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।


गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार।

कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरैं पार।।

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