Thursday, 10 July 2025

ओअं सोहं बाजा बाजै त्रिकुटी सूरत समानी

भेद बानी कोई सुनता है गुरु ज्ञानी

गगन आवाज़ होती झीनी

पहले होता नाद बिन्दु से फेर जमाया पानी


सब घट पूरन पूर रहा है आदि पुरुष निर्बानी

जो तन पाया पटा लिखाया तिस्ना नहीं बुझानी


अमृत छोड़ी बिषय रस चाखा उल्टी फाँस फँसानी

ओअं सोहं बाजा बाजै त्रिकुटी सूरत समानी


इड़ा पिंगला सुषमन सोधे सुन्न धुजा फहरानी

दीद बर-दीद हम नज़रों देखा अजरा अमर निसानी


कह कबीर सुनो भाई साधो यही आदि की बानी

No comments:

Post a Comment