भेद बानी कोई सुनता है गुरु ज्ञानी
गगन आवाज़ होती झीनी
पहले होता नाद बिन्दु से फेर जमाया पानी
सब घट पूरन पूर रहा है आदि पुरुष निर्बानी
जो तन पाया पटा लिखाया तिस्ना नहीं बुझानी
अमृत छोड़ी बिषय रस चाखा उल्टी फाँस फँसानी
ओअं सोहं बाजा बाजै त्रिकुटी सूरत समानी
इड़ा पिंगला सुषमन सोधे सुन्न धुजा फहरानी
दीद बर-दीद हम नज़रों देखा अजरा अमर निसानी
कह कबीर सुनो भाई साधो यही आदि की बानी
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