अचल दिगम्बर थीर हैं। 
भक्ति हेत आन काया धर आये,
अविगत सत्यकबीर हैं।।
नानक दादू अगम अगाधू,
तेरी जहाज खेवट सही। 
सुख सागर के हंस आये, 
भक्ति हिरम्बर उर धरी।।
कोटि भानु प्रकाश पूरण,
रूंम रूंम की लार है। 
अचल अभंगी है सतसंगी, 
अबिगत का दीदार है।।
धन सतगुरु उपदेश देवा,
चैरासी भ्रम मेटहीं। 
तेज पु´ज आन देह धर कर, 
इस विधि हम कुं भेंट हीं।।
शब्द निवास आकाशवाणी,
योह सतगुरु का रूप है। 
चन्द सूरज ना पवन ना पानी, 
ना जहां छाया धूप है।।
 
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