Friday, 23 May 2025

आत्म प्राण उद्धार हीं, ऐसा धर्म नहीं और

कबीर, आत्म प्राण उद्धार हींऐसा धर्म नहीं और। 

कोटि अध्वमेघ यज्ञसकल समाना भौर।।

भक्ति बीज पलटै नहीं

 गरीबदास जी महाराज अपनी वाणी में कहते हैं:

भक्ति बीज पलटै नहींयुग जांही असंख।
सांई सिर पर राखियोचैरासी नहीं शंक।।

घीसा आए एको देश सेउतरे एको घाट।
समझों का मार्ग एक हैमूर्ख बारह बाट।।

कबीर भक्ति बीज पलटै नहींआन पड़ै बहु झोल।
जै कंचन बिष्टा परैघटै न ताका मोल।।

स्वांसा ही में सार पद, पद में स्वांसा सार

 संत गरीबदास जी महाराज की अमृत वाणी में स्वांस के नाम का प्रमाण:--

गरीबस्वांसा पारस भेद हमाराजो खोजे सो उतरे पारा।
स्वांसा पारा आदि निशानीजो खोजे सो होए दरबानी।

स्वांसा ही में सार पदपद में स्वांसा सार।
दम देही का खोज करोआवागमन निवार।।

गरीबस्वांस सुरति के मध्य हैन्यारा कदे नहीं होय।
सतगुरु साक्षी भूत कूंराखो सुरति समोय।।

गरीबचार पदार्थ उर में जोवैसुरति निरति मन पवन समोवै।
सुरति निरति मन पवन पदार्थ(नाम)करो इक्तर यार।

द्वादस अन्दर समोय लेदिल अंदर दीदार।

शब्द विना सुरति आँधरी, कहो कहाँको जाय

शब्द हमारा आदि कासुनि मत जाहु सरख।
जो चाहो निज तत्व कोशब्दे लेहु परख।।9।।

शब्द विना सुरति आँधरीकहो कहाँको जाय।
द्वार न पावे शब्द काफिर फिर भटका खाय।।10।।

शब्द शब्द बहुअन्तरासार शब्द मथि लीजे।
कहँ कबीर जहँ सार शब्द नहींधिग जीवन सो जीजे।।11।।

सार शब्द पाये बिनाजीवहिं चैन न होय।
फन्द काल जेहि लखि पडेसार शब्द कहि सोय।।12।।

सतगुरु शब्द प्रमान हैकह्यो सो बारम्बार।
धर्मनिते सतगुरु कहैनहिं बिनु शब्द उबार।।13।।

धर्मनि सार भेद अव खोलौं। शब्दस्वरूपी घटघट बोलौं।।
शब्दहिं गहे सो पंथ चलावै। बिना शब्द नहिं मारग पावै।।

प्रगटे वचन चूरामनि अंशू। शब्द रूप सब जगत प्रशंसू।।
शब्दे पुरुष शब्द गुरुराई। विना शब्द नहिं जिवमुकताई।।
जेहिते मुक्त जीव हो भाई। मुकतामनि सो नाम कहाई।।

घर घर होय काल की सेवा

घर घर होय पुरुषकी सेवा। पुरुष निरंजन कहे न भेवा।।


ताकी भगति करे संसारा। नर नारी मिल करें पुकारा।।
सनकादिक नारद मुख गावें। ब्रह्मा विष्णु महेश्वर ध्यावें।

मुनी व्यास पारासर ज्ञानी। प्रहलाद और बिभीषण ध्यानी।।

द्वादस भगत भगती सो रांचे। दे तारी नर नारी नाचे।।

जुग जुग भगत भये बहुतेरे। सबे परे काल के घेरे।।
काहू भगत न रामहिं पाया। भगती करत सर्व जन्म गंवाया।।

सोहं - नानक

प्रमाण के लिए पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहिब के पृष्ठ नं. 59.60 पर सिरी राग महला 1 (शब्द नं.11)
बिन गुर प्रीति न ऊपजै हउमै मैलु न जाइ।।
सोहं आपु पछाणीऐ सबदि भेदि पतीआइ।।
गुरमुखि आपु पछाणीऐ अवर कि करे कराइ।।
मिलिआ का किआ मेलीऐ सबदि मिले पतीआइ।।
मनमुखि सोझी न पवै वीछुडि़ चोटा खाइ।।
नानक दरु घरु एकु है अवरु न दूजी जाइ।।


प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 84 पर राग भैरव - महला 1 - पौड़ी नं. 32
साध संगति मिल ज्ञानु प्रगासै। साध संगति मिल कवल बिगासै।।
साध संगति मिलिआ मनु माना। न मैं नाह ऊँ-सोहं जाना।।
सगल भवन महि एको जोति। सतिगुर पाया सहज सरोत।।
नानक किलविष काट तहाँ ही। सहजि मिलै अंमिृत सीचाही।।32।।


प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 3 पर गौड़ी रंगमाला जोग निधि - महला 1 - पौड़ी नं. 17
पूर्ब फिरि पच्छम कौ तानै। अजपा जाप जपै मनु मानै।।
अनहत सुरति रहै लिवलाय। कहु नानक पद पिंड समाय।।17।।


प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 4 पर गौड़ी रंगमाला जोग निधि - महला 1 - पौड़ी नं. 28
सोहं हंसा जाँ का जापु। इहु जपु जपै बढ़ै परतापु।।
अंमि न डूबै अगनि न जरै। नानक तिंह घरि बासा करै।।28।।


प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 5 पर गौड़ी रंगमाला जोग निधि - महला 1 - पौड़ी नं. 38
सोहं हंसा जपु बिन माला। तहिं रचिआ जहिं केवल बाला।।
गुर मिलि नीरहिं नीर समाना। तब नानक मनूआ गगनि समाना।।38।।


प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 71 पर रामकली - महला 1 - पौड़ी नं. 42
अैसा संम्रथु को नही किसु पहि करउँ बिनंतू
पूरा सतिगुर सेव तूँ गुरमति सोहं मंतू42।।


प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 127 पर रामकली - महला 1 - पौड़ी नं. 27
बिन संजम बैराग न पाया। भरमतू फिरिआ जन्म गवाया।।
क्या होया जो औध बधाई। क्या होया जु बिभूति चढ़ाई।।
क्या होया जु सिंगी बजाई। क्या होया जु नाद बजाई।।
क्या होया जु कनूआ फूटा। क्या होया जु ग्रहिते छूटा।।
क्या होया जु उश्न शीत सहै। क्या होया जु बन खंड रहै।।
क्या होया जो मोनी होता। क्या होया जो बक बक करता।।
सोहं जाप जपै दिन राता। मन ते त्यागै दुबिधा भ्रांता।।
आवत सोधै जावत बिचारै। नौंदर मूँदै तषते मारै।।
दे प्रदक्खणाँ दस्वें चढ़ै। उस नगरी सभ सौझी पड़ै।।
त्रौगुण त्याग चैथै अनुरागी। नानक कहै सोई बैरागी।।27।।


पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहिब के पृष्ठ नं. 1092.1093 पर राग मारू महला 1 - पौड़ी नं. 1
हउमै करी ता तू नाही तू होवहि हउ नाहि।।
बूझहु गिआनी बूझणा एह अकथ कथा मन माहि।।
बिनु गुर ततू न पाईऐ अलखु वसै सभ माहि।।
सतिगुरु मिलै त जाणीऐ जां सबदु वसै मन माहि।।
आपु गइआ भ्रमु भउ गइआ जनम मरन दुख जाहि।।
गुरमति अलखु लखाईऐ ऊतम मति तराहि।।
नानक सोहं हंसा जपु जापहु त्रिभवण तिसै समाहि।।
जो इन सर्व संतों की वाणी (ग्रन्थों) में प्रमाण है तथा कबीर पंथी शब्दावली में सत्यनाम ऊँ-सोहं के जाप का प्रमाण है। वह भी पूरे संत जिसको नाम देने का अधिकार होसे ही लेना चाहिए।



सोहम जाप

श्वास श्वास में नाम ले और बिरठा श्वास मत खोय,

ना जाने इस श्वास का आवन होय ना होय।

 

श्वास की कर सुमिरनी और कर अजपा का जाप,

परम तत्व हृदय धरो तो सोहम आपो आप।

 

सोहम पोया पवन में और बांधो सुरत सुमेर,

ब्रह्म घट हृदय धरो, इसी विधि माला फेर।

 

माला है निज श्वास की और फेरेगा कोई दास?

चौरासी भर में है नहीं मिटे काल की फास।


श्वास श्वास में नाम ले और बिरठा श्वास मत खोय, 

ना जाने इस श्वास का आवन होय ना होय


श्वास की कर सुमिरनी और कर अजपा का जाप, 

परम तत्व हृदय धरो तो सोहम आपो आप।



सोऽहं या सोहम या सोहंग

– कबीर, चरनदास, सहजो, दया, तुलसी, भीखा, पलटू, नानक, दरिया, धर्मदास, सुखराम


कबीरदास
कबीर, कहता हूँ कही जात हूँ । कहूँ बजा कर ढोल ।
स्वाँस जो खाली जात है । तीन लोक का मोल ।
स्वाँस उस्वाँस में नाम जपो । व्यर्था स्वाँस मत खोय ।
न जाने इस स्वाँस को । आवन होके न होय ।

क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह ।
साँस-सांस सुमिरन करो और यतन कुछ नांह ।
हम बैरागी बृह्म पद । सन्यासी महादेव ।
सोहं मंत्र दिया शंकर कूं । करत हमारी सेव ।

अष्ट कमल तोहि भेद बताऊँ । अजपा सोहं प्रगट बुझाऊँ ।
सोहं पवन लै कीन्ह पसारा । निकुत नाम लै हंस उबारा ।
तन मन दैके चीन्ह शरीर । अंकनाम कहि दीन्ह शरीर ।

सहजे सोहं जाप है । सहजे खैंच विमान ।
बावन अक्षर से परै । सतगुरु समझि हर्फ ।
कबिरा माला काठ की । बहुत जतन का फेर ।
माला फेरो स्वांस की । जामें गांठ न मेर ।


चरनदास
घट में ऊँचा ध्यान शब्द का, सोहं सोहं माला ।
घट में बिन सूरज उजियारा, राति दिना तहिं सूझै।
नाभि नासिका माहिं करि । सोहं सोहं जाप ।
सोई अजपा जाप है । छुटे पुन्य अरु पाप ।


सहजो बाई
ऐसा सुमिरन कीजिये । सहज रहै लौ लाय ।
बिनु जिभ्या बिन तालुवै । अन्तर सुरत लगाय ।
हन्सा सोहं तार कर । सुरति मकरिया पोय ।
उतर उतर फिरि फिरि चढ़े । सहजो सुमिरन होय ।

सहज श्वास तीरथ बहै । सहजो जो कोइ न्हाय ।
पाप पुन्य दोनों छुटें । हरिपद पहुँच जाय ।
सब घट अजपा जाप है । हंसा सोहं परख ।
सुरत हिये ठहराये कै । सहजो इहि विधि निरख ।


दया बाई
अजपा सोहं जाप तें । त्रिबिद ताप मिटि जाहिं।
दया लहै निज रूप कूं । या में संसय नाहिं ।


हाथरस वाले तुलसी साहब
सोहँग का कोई भेद न पाई । सोहँग स्वाँगा हैं नहि भाई ।
तत्त पाँच गुन तीनि की स्वाँसा । सोहँग सुरति कीन्ह पधारा ।


भीखा साहब
नामै प्रानायाम कहाये । सोहं सोहं नामै गाये ।


पलटू साहिब
भँवरगुफा के बीच । उठत है सोहं बानी ।
जहँ उठै सोहंगम सब्द । सब्द के भीतर पैठा ।
नाना उठै तरंग रंग । कुछ कहा न जाई ।
जंत्र बिना जंत्री बजै । रसना बिनु गावै ।

सोहं सब्द अलापि कै । मन को समुझावै ।
श्वांसा की कर सुमरणी, अजपा को कर जाप ।
परम तत्व को ध्यान धरि, सोहं आपे आप ।

माला है निज श्वांस की, फेरेंगे कोई दास ।
चौरासी भरमे नहीं, कटे कर्म की फांस ।
ओहम से काया बनी । सोहम से मन होय ।
ओहम सोहम से परे । बूझे विरला कोय ।

जो जन होए जौहरी । सो धन ले विलगाय ।
सोहं सोहं जप मुए । वृथा जन्म गवाया ।
सार शब्द मुक्ति का दाता । जाका भेद नहीं पाया ।


गुरु नानक देव
बिन गुर प्रीति न ऊपजै, हउमै मैलु न जाइ।।
सोहं आपु पछाणीऐ, सबदि भेदि पतीआइ।।
गुरमुखि आपु पछाणीऐ, अवर कि करे कराइ।।
मिलिआ का किआ मेलीऐ, सबदि मिले पतीआइ।।

मनमुखि सोझी न पवै, वीछुडि़ चोटा खाइ।।
नानक दरु घरु एकु है, अवरु न दूजी जाइ।।
सोहं हंसा जपु बिन माला । तहिं रचिआ जहिं केवल बाला ।
सोहं शब्दु सदा धुनि गाजै । जागतु सोवै नित शब्दु बिराजै ।

तीन अवस्था के सँगि रहै । जागत सोवत सोहं कहै ।
सोहं जाप जपै दिन राता । मन ते त्यागे दुबिधा भ्रांता ।
पूर्ब फिरि पच्छम कौ तानै । अजपा जाप जपै मनु मानै ।
अनहत सुरति रहै लिवलाय । कहु नानक पद पिंड समाय ।

सोहं हंसा जाँ का जापु । इहु जपु जपै बढ़ै परतापु ।
अंमि न डूबै अगनि न जरै । नानक तिंह घरि बासा करै ।

सोहं हंसा जपु बिन माला । तहिं रचिआ जहिं केवल बाला ।
गुर मिलि नीरहिं नीर समाना । तब नानक मनूआ गगनि समाना ।


मारवाड़ वाले दरिया साहिब
गंग जमुन बिच मुरली बाजै । उत्तर दिस धुन होय ।
उन मुरली की टेरहि सुनि सुनि । रहीं गोपिका मोहि ।
सोहं सुरति ध्यान अजपा करु चितवत चन्द्र चकोरे।
कहे “दरिया” साहब सतगुरु से रहो सदा कर जोरे ।


बिहार वाले दरिया साहेब
अष्टदल कमल सुरति लवलाव । अजपा जपि के मन ठहराय ।
भँवर गोफा में उलटि जाय । जगमग ज्योति रहे छवि छाय ।
जीव सोहंगम सुरति है न्यारा । दिव्य दृष्टि का सकल पसारा ।
सोई सुरति गहो चित लाई । मकर तार डोरी तहँ पाई ।


धर्मदास
जेठ जागती जोति की महिमा । परखो संत सुजान ।
अजपा जाप जपो सोहंग । पावो पद निरबान ।
सावन सार नाम निज जपि ले । यह जप अपने से ।
कर नहिं हलै न डोलै जिभ्या । सोहं जपने से ।

काल नहिं ब्यापै सुपमनि से ।
इंगल पिंगल के मारग की । तुम डोर गहो मन से ।
नाम सोहंग जपो स्वांसा ।


सुखराम दास
पूर्व ध्यान वेद में गायो । ओऊ सोहं शब्द बतायो ।
पवन संग गिगन में जावे । नाम चढ़े सो भेद न पावे ।
नाम चढ़े पिछम दिश होई । आ कुदरत कला तके है कोई ।
सब ही साध ना जाणी भाई । नहीं नहीं दोष तुम्हारे मांही ।

ओऊ अजपो संग करे । सोहं स्वासा जांण ।
ररो ममो रट जीभ सुं । धरे बीच में आंण ।
धरे बीच में आंण । तबे ने:अच्छर आवे ।
इण छके बिन मेल । पीठ राहा कदे न पावे ।

सुखराम पास ऐ एकठा । मथे नाभ में आंण ।
ओंम अजपा संग करे । सोहं स्वासा जांण ।

ओऊ सोहं लींग है । स्वासा पुरुष शरीर ।
रंरकार सो बीज है । ममंकार बिंद वीर ।
ममंकार बिंद वीर । भग अंच्छा सो होई ।
सुरत कँवल तां मांय । प्रीत नारी कहुं तोय ।

सुखराम भोग ए करे । जीभ सेज पर आय ।
तो जीव ऊलट आद घर । मिले ब्रह्म में जाय ।
सब जंतर सब मंतर सारा । ये माया रुपी सरब विचारा ।
ऐ सोहं से पैदा होई । यामें परम मोख नहीं कोई ।

सब ही जाप नाम सब बांणी । ओऊँकार कहे सब आंणी ।
सो सोहं से पैदा होई । माया मूल आद है सोई ।
करामात करतूत कहावे । सो ओऊं सोहं कर पावे ।
ये सरब ख्याल माया गुण सोई । घड भंजन माया का दोई ।
मुद्रा कंठी पावड़ी अलफी । भेद ग्यान की पहरी।
सांस ऊसाँस अजपो घट में । निरगुन माला फेरी