– कबीर, चरनदास, सहजो, दया, तुलसी, भीखा, पलटू, नानक, दरिया, धर्मदास, सुखराम
कबीरदास
कबीर, कहता हूँ कही जात हूँ । कहूँ बजा कर ढोल ।
स्वाँस जो खाली जात है । तीन लोक का मोल ।
स्वाँस उस्वाँस में नाम जपो । व्यर्था स्वाँस मत खोय ।
न जाने इस स्वाँस को । आवन होके न होय ।
क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह ।
साँस-सांस सुमिरन करो और यतन कुछ नांह ।
हम बैरागी बृह्म पद । सन्यासी महादेव ।
सोहं मंत्र दिया शंकर कूं । करत हमारी सेव ।
अष्ट कमल तोहि भेद बताऊँ । अजपा सोहं प्रगट बुझाऊँ ।
सोहं पवन लै कीन्ह पसारा । निकुत नाम लै हंस उबारा ।
तन मन दैके चीन्ह शरीर । अंकनाम कहि दीन्ह शरीर ।
सहजे सोहं जाप है । सहजे खैंच विमान ।
बावन अक्षर से परै । सतगुरु समझि हर्फ ।
कबिरा माला काठ की । बहुत जतन का फेर ।
माला फेरो स्वांस की । जामें गांठ न मेर ।
चरनदास
घट में ऊँचा ध्यान शब्द का, सोहं सोहं माला ।
घट में बिन सूरज उजियारा, राति दिना तहिं सूझै।
नाभि नासिका माहिं करि । सोहं सोहं जाप ।
सोई अजपा जाप है । छुटे पुन्य अरु पाप ।
सहजो बाई
ऐसा सुमिरन कीजिये । सहज रहै लौ लाय ।
बिनु जिभ्या बिन तालुवै । अन्तर सुरत लगाय ।
हन्सा सोहं तार कर । सुरति मकरिया पोय ।
उतर उतर फिरि फिरि चढ़े । सहजो सुमिरन होय ।
सहज श्वास तीरथ बहै । सहजो जो कोइ न्हाय ।
पाप पुन्य दोनों छुटें । हरिपद पहुँच जाय ।
सब घट अजपा जाप है । हंसा सोहं परख ।
सुरत हिये ठहराये कै । सहजो इहि विधि निरख ।
दया बाई
अजपा सोहं जाप तें । त्रिबिद ताप मिटि जाहिं।
दया लहै निज रूप कूं । या में संसय नाहिं ।
हाथरस वाले तुलसी साहब
सोहँग का कोई भेद न पाई । सोहँग स्वाँगा हैं नहि भाई ।
तत्त पाँच गुन तीनि की स्वाँसा । सोहँग सुरति कीन्ह पधारा ।
भीखा साहब
नामै प्रानायाम कहाये । सोहं सोहं नामै गाये ।
पलटू साहिब
भँवरगुफा के बीच । उठत है सोहं बानी ।
जहँ उठै सोहंगम सब्द । सब्द के भीतर पैठा ।
नाना उठै तरंग रंग । कुछ कहा न जाई ।
जंत्र बिना जंत्री बजै । रसना बिनु गावै ।
सोहं सब्द अलापि कै । मन को समुझावै ।
श्वांसा की कर सुमरणी, अजपा को कर जाप ।
परम तत्व को ध्यान धरि, सोहं आपे आप ।
माला है निज श्वांस की, फेरेंगे कोई दास ।
चौरासी भरमे नहीं, कटे कर्म की फांस ।
ओहम से काया बनी । सोहम से मन होय ।
ओहम सोहम से परे । बूझे विरला कोय ।
जो जन होए जौहरी । सो धन ले विलगाय ।
सोहं सोहं जप मुए । वृथा जन्म गवाया ।
सार शब्द मुक्ति का दाता । जाका भेद नहीं पाया ।
गुरु नानक देव
बिन गुर प्रीति न ऊपजै, हउमै मैलु न जाइ।।
सोहं आपु पछाणीऐ, सबदि भेदि पतीआइ।।
गुरमुखि आपु पछाणीऐ, अवर कि करे कराइ।।
मिलिआ का किआ मेलीऐ, सबदि मिले पतीआइ।।
मनमुखि सोझी न पवै, वीछुडि़ चोटा खाइ।।
नानक दरु घरु एकु है, अवरु न दूजी जाइ।।
सोहं हंसा जपु बिन माला । तहिं रचिआ जहिं केवल बाला ।
सोहं शब्दु सदा धुनि गाजै । जागतु सोवै नित शब्दु बिराजै ।
तीन अवस्था के सँगि रहै । जागत सोवत सोहं कहै ।
सोहं जाप जपै दिन राता । मन ते त्यागे दुबिधा भ्रांता ।
पूर्ब फिरि पच्छम कौ तानै । अजपा जाप जपै मनु मानै ।
अनहत सुरति रहै लिवलाय । कहु नानक पद पिंड समाय ।
सोहं हंसा जाँ का जापु । इहु जपु जपै बढ़ै परतापु ।
अंमि न डूबै अगनि न जरै । नानक तिंह घरि बासा करै ।
सोहं हंसा जपु बिन माला । तहिं रचिआ जहिं केवल बाला ।
गुर मिलि नीरहिं नीर समाना । तब नानक मनूआ गगनि समाना ।
मारवाड़ वाले दरिया साहिब
गंग जमुन बिच मुरली बाजै । उत्तर दिस धुन होय ।
उन मुरली की टेरहि सुनि सुनि । रहीं गोपिका मोहि ।
सोहं सुरति ध्यान अजपा करु चितवत चन्द्र चकोरे।
कहे “दरिया” साहब सतगुरु से रहो सदा कर जोरे ।
बिहार वाले दरिया साहेब
अष्टदल कमल सुरति लवलाव । अजपा जपि के मन ठहराय ।
भँवर गोफा में उलटि जाय । जगमग ज्योति रहे छवि छाय ।
जीव सोहंगम सुरति है न्यारा । दिव्य दृष्टि का सकल पसारा ।
सोई सुरति गहो चित लाई । मकर तार डोरी तहँ पाई ।
धर्मदास
जेठ जागती जोति की महिमा । परखो संत सुजान ।
अजपा जाप जपो सोहंग । पावो पद निरबान ।
सावन सार नाम निज जपि ले । यह जप अपने से ।
कर नहिं हलै न डोलै जिभ्या । सोहं जपने से ।
काल नहिं ब्यापै सुपमनि से ।
इंगल पिंगल के मारग की । तुम डोर गहो मन से ।
नाम सोहंग जपो स्वांसा ।
सुखराम दास
पूर्व ध्यान वेद में गायो । ओऊ सोहं शब्द बतायो ।
पवन संग गिगन में जावे । नाम चढ़े सो भेद न पावे ।
नाम चढ़े पिछम दिश होई । आ कुदरत कला तके है कोई ।
सब ही साध ना जाणी भाई । नहीं नहीं दोष तुम्हारे मांही ।
ओऊ अजपो संग करे । सोहं स्वासा जांण ।
ररो ममो रट जीभ सुं । धरे बीच में आंण ।
धरे बीच में आंण । तबे ने:अच्छर आवे ।
इण छके बिन मेल । पीठ राहा कदे न पावे ।
सुखराम पास ऐ एकठा । मथे नाभ में आंण ।
ओंम अजपा संग करे । सोहं स्वासा जांण ।
ओऊ सोहं लींग है । स्वासा पुरुष शरीर ।
रंरकार सो बीज है । ममंकार बिंद वीर ।
ममंकार बिंद वीर । भग अंच्छा सो होई ।
सुरत कँवल तां मांय । प्रीत नारी कहुं तोय ।
सुखराम भोग ए करे । जीभ सेज पर आय ।
तो जीव ऊलट आद घर । मिले ब्रह्म में जाय ।
सब जंतर सब मंतर सारा । ये माया रुपी सरब विचारा ।
ऐ सोहं से पैदा होई । यामें परम मोख नहीं कोई ।
सब ही जाप नाम सब बांणी । ओऊँकार कहे सब आंणी ।
सो सोहं से पैदा होई । माया मूल आद है सोई ।
करामात करतूत कहावे । सो ओऊं सोहं कर पावे ।
ये सरब ख्याल माया गुण सोई । घड भंजन माया का दोई ।
मुद्रा कंठी पावड़ी अलफी । भेद ग्यान की पहरी।
सांस ऊसाँस अजपो घट में । निरगुन माला फेरी