Tuesday, 15 April 2025

Aisa guru kare, sab vidhi poora hoye

Kabir, Aisa guru kare, sab vidhi poora hoye.

Oche se muh lagaye ke, mool hi dey gavaye.

सात दीप नौ खंड में, सतगुरु फेंकी डोर

कबीर, सात दीप नौ खंड में,
सतगुरु फेंकी डोर ।
ता पर हनसा न चढ़े,
तो क्या सतगुरु का दोष ।I

सत्गुरु की दया हुई जब

सत्गुरु की दया हुई जब,
बहुत साल साधन करते करते।
ऐक पल मे लखा दिया,
थक गऐ चार वेद जिसे वरणन करते करते।।

Monday, 14 April 2025

7 Dweep aur 7 Samudra

In Hindu cosmology, the term "dweep" refers to continents. The seven continents, or "sapta-dvīpa," are: Jambudvīpa, Plakṣadvīpa, Salmalidvīpa, Kusadvīpa, Krouncadvīpa, Śākadvīpa, and Pushkaradvīpa. These continents are described in Hindu scriptures like the Markandeya Purana and Śrīmad-Bhāgavatam. 
Here's a more detailed look at each: 
  • Jambudvīpa: Considered the central continent and is associated with the Indian subcontinent.
  • Plakṣadvīpa: Located to the south of Jambudvīpa.
  • Salmalidvīpa: To the south of Plakṣadvīpa.
  • Kusadvīpa: Located to the south of Salmalidvīpa.
  • Krouncadvīpa: Located to the south of Kusadvīpa.
  • Śākadvīpa: Located to the south of Krouncadvīpa.
  • Pushkaradvīpa: The southernmost continent.

Monday, 7 April 2025

गगन में आवाज हो रही झीनी-झीनी

सुनता है गुरु ज्ञानी
गगन में आवाज हो रही झीनी-झीनी

पहिले आए आए पहिले आए
नाद बिंदु से पीछे जमया पानी पानी हो जी
सब घट पूरण गुरु रह्या है
अलख पुरुष निर्बानी हो जी ll 1 ll

वहां से आया पता लिखाया
तृष्णा तूने बुझाई बुझाई..
अमृत छोड़सो विषय को धावे,
उलटी फाँस फंसानी हो जी ll 2 ll

गगन मंडलू में गौ भी आनी
भोई से दही जमायाi जमाया…
माखन माखन संतों ने खाया,
छाछ जगत बापरानी हो जी … ll 3 ll

बिन धरती एक मंडल दीसे,
बिन सरोवर जूँ पानी रे
गगन मंडलू में होए उजियाला,
बोल गुरु-मुख बानी हो जी ll 4 ll

ओऽहं सोऽहं बाजा बाजे,
त्रिकुटी धाम सुहानी रे
इडा पिंगला सुषुमना नारी,
सून ध्वजा फहरानी हो जी ll 5 ll

कहत कबीरा सुनो भई साधो,
जाय अगम की बानी रे..
दिन भर रे जो नज़र भर देखे,
अजर अमर वो निशानी हो जी … ll 6 ll

पांच तत्व गुन तीन के, आगे मुक्ति मुकामतहां कबीरा घर किया, गोरख दत्त न राम

पांच तत्व गुन तीन के, आगे मुक्ति मुकाम
तहां कबीरा घर किया, गोरख दत्त न राम

मैं लागा उस एक सों, एक भया सब माहिं।
सब मेरा मैं सबन का, तहां दूसरा नांहि।

पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी

बिना सूरज ओर चांद के प्रकाश हो, एसी भूमिका पर जाने पर उसे सभी ओर
वही(भगवान) दृष्टिगोचर होता है। परन्तु  यह तभी संभव है, जब हमें सतगुरु के द्वारा उस अमृतमयी धारा का पान करवाया जाए। और जीवमात्र की प्यास बुझाई जाये। यहाँ पर सतगुरु कबीर ने इस तरह से कहा है।

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अमृत केरी मोठरी, राखो सतगुरु छोर।
आप सरिका जो मिले, ताही पिलावे छोड़।।

अमृत पीवे ते जणा, सतगुरु लागा कान।
वस्तु अगोचर मिल गई, मन नहीं आवे आन।।

पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।

झड़ी लगी, यहाँ झड़ी लगी।
पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।।

बुंद का प्यासा, घड़ा भर पाया।
सपने में वो, स्वाद न आया।।

कोई किसे, कैसे समझाए।
एक बुंद की तरण(प्यास) लगी।।_____(1)

पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।

झड़ी लगी, यहाँ झड़ी लगी।
पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।।

प्यास बिना क्या, पीवे है पानी।
प्यास अकेली, ये है वो पानी।।

बिना अधिकार, कोई नहीं जानी।
अमृत रस की, झड़ी लगी।।_____(2)

पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।

झड़ी लगी, यहाँ झड़ी लगी।
पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।।

आमीरस पीवे, ऊमर पद पावे।
भवयोनी में, कभी नहीं आवे।।

जरा-मरण का दुख नसावे।
घट की गगरिया भरण लगी।।_____(3)

पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।

झड़ी लगी, यहाँ झड़ी लगी।
पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।।

बून्द अमीरस गुरु जी की वाणी।
जीवन रास्ता है, यह पानी।।

कबीर संगत में, हो हमारी।
डाली प्रेम की हरी लगी।।_____(4)

पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।

झड़ी लगी, यहाँ झड़ी लगी।
पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।।

Saturday, 5 April 2025

कबीर, मोर निरंजन नाऊं

कबीर, मै सिरजूं मै मारता,
मै जारुं मै खाऊं।
जल और थल मे मै रमा,
मोर निरंजन नाऊं।।

Krishna and Garud discussion on Kabir

Tuesday, 1 April 2025

बलख और बिलायत लग, हम ही धारें भेष

गरीब, खुरासान काबुल किला,
बगदाद बनारस एक ।
बलख और बिलायत लग,
हम ही धारें भेष Il