प्रेम निरन्तर लगन है, निशिदिन सहज समोय ।।
क्षणिक प्रेम सबमें जगे, क्षण भर में मिट जाय ।
मर्यादा अनुराग की, विघ्न कठिन रह जाय ।।
प्राण भले चल जायेंगे, जाय प्रियतम नहिं प्रेम ।
लव लागी धारा अटल, टूट नहीं यह प्रेम ।।
प्रेम धार टूटत नहीं, वह रह एक समान ।
यह लक्षण प्रभु मिलन का, प्रेम रतन गुण खान ।।
क्षण वियोग नहिं सहि सके, उत्तम प्रेम है सोय ।
रूप प्रितम प्रेमी बने, यह गति जाने कोय ।।
पल भर प्रभु भूले नहीं, स्मरण श्वांस उश्वांस ।
लक्षण उत्तम प्रेम का, सहज खुरति निःश्वाॉस ।।
काम कोई करते रहं, प्रेम धार प्रभु लाग ।
चलत फिरत टूटे नहीं, प्रेम उदय बड़ भाग ।।
मीन भीन नहिं जल रहै, क्षण वियोग तज प्रान ।
अलग भक्त प्रभु से नर्हीं, धिक् जीवन बिनु ज्ञान ।।
मणी सर्पवत प्रेम है, क्षण मणि नाहि वियोग ।
सहि न सक तन को तजे, शब्द सुरति रत योग ।।
मृगा शब्द का प्रेम है, मृगा शब्द लवलीन ।
मगन देह सुधि नहि रहे, शब्द सुरति गति लीन ।।
चातक श्वाती प्रेम जल, वृष्टि होय चहुँ मास ।
ग्रहण रञ्च जल नहिं करे, त्यों भक्तन प्रभु आश ।।
सती सतीत्व सराहिये, जरे पती अनुराग ।
योगा अगिन हरिजन करें, भोग जगत सब त्याग ।।
प्रेम व ज्ञान सम्बन्ध से, सो है विविध प्रकार ।
मूल ज्ञान कारण रहे, प्रेम सम्बन्ध विचार ।।
ज्ञान वृद्धि ज्यों ज्यों चले, प्रेम बढ़त त्यों जाय ।
तत्वज्ञान के अग्र में, पूर्ण प्रेम दृढ आय ।।
जाग जीवन प्रभु प्रेम बिनु, मृतक जिवन जग जान ।
प्रेम बिना उत्तम नहीं, प्रेम जिवन नर प्राण ।।
प्रायश्चित जन्म अनेक का, सुगम युक्ति प्रभु प्रेम ।
चेतन अन्तर शुद्ध हो, फल वांछित मय प्रेम ।।
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