सदाफल, ब्र्ह्मविद्या परचार का, सद्गुरु का जग काम ।
करे करावे ताहि को, सोइ सेवा शिष नाम ।।
जातीय राष्ट्र समाज की, सब ही सेवा जान ।
उत्तम सेवा जगत की, ब्रह्मविद्या कर जान ।।
सेवाहिन जिज्ञासु से, प्रष्नोत्तर नहिं होय ।
मर्य्यादा आचार्य्य की, अन्ध प्रथा जग होय ॥
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