Friday, 23 May 2025

आत्म प्राण उद्धार हीं, ऐसा धर्म नहीं और

कबीर, आत्म प्राण उद्धार हींऐसा धर्म नहीं और। 

कोटि अध्वमेघ यज्ञसकल समाना भौर।।

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