गरीब, साहिब से सतगुरु भये, सतगुरु से भये साध। ये तीनों अंग एक हैं,गति कछु अगम अगाध।।52।।
गरीब, साहिब से सतगुरु भये, सतगुरु से भये संत। धर - धर भेष विशाल अंग, खेलें आदि और अंत।।53।।
गरीब, ऐसा सतगुरु सेइये, बेग उतारे पार। चैरासी भ्रम मेटहीं, आवा गवन निवार।।54।।
गरीब, अन्धे गूंगे गुरु घने, लंगड़े लोभी लाख। साहिब सैं परचे नहीं, काव बनावैं साख।।55।।
गरीब, ऐसा सतगुरु सेईये, शब्द समाना होय। भौ सागर में डूबतें, पार लंघावैं सोय।।56।।
गरीब, ऐसा सतगुरु सेईये, सोहं सिंधु मिलाप। तुरिया मध्य आसन करैं, मेटैं तीन्यों ताप।।57।।
गरीब, तुरिया पर पुरिया महल, पार ब्रह्म का देश। ऐसा सतगुरु सेईये, शब्द विग्याना नेस।।58।।
गरीब, तुरिया पर पुरिया महल, पार ब्रह्म का धाम। ऐसा सतगुरु सेईये, हंस करैं निहकाम।।59।।
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