Saturday, 26 October 2024

सद्गुरु सेवाहीन को, करे न ब्रह्म उपदेश

सदाफल, उपदेशक विद्वान बन, सहल हैं वाचक ज्ञान ।
अमली जीवन प्रेम रेत, सेवक दुर्लभ जान ।।

सेव्य भाव सेवक रहे, उत्तरे भव निधि पार ।
अन्य भरम संसार में, सूझे वार न पार ।।

सद्गुरु सेवाहीन को, करे न ब्रह्म उपदेश ।
अनाधिकार दिक्षा नहीं, सेवक श्रुति आदेश ।।

जिज्ञासू में बहुत गुण, सेवा गुण एक नाहिं ।
अधिकारी वह नाहि है, कर उपदेश न ताहि ।।


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