ज्ञान सागर अति उजागर, निर्विकार निरंजनं।
ब्रह्मज्ञानी महाध्यानी, सत सुकृत दुःख भंजनं।1।
मूल चक्र गणेश बासा, रक्त वर्ण जहां जानिये।
किलियं जाप कुलीन तज सब, शब्द हमारा मानिये।2।
स्वाद चक्र ब्रह्मादि बासा, जहां सावित्राी ब्रह्मा रहैं।
ओ3म जाप जपंत हंसा, ज्ञान जोग सतगुरु कहैं।3।
नाभि कमल में विष्णु विशम्भर, जहां लक्ष्मी संग बास है।
हरियं जाप जपन्त हंसा, जानत बिरला दास है।4।
हृदय कमल महादेव देवं, सती पार्वती संग है।
सोहं जाप जपंत हंसा, ज्ञान जोग भल रंग है।5।
कंठ कमल में बसै अविद्या, ज्ञान ध्यान बुद्धि नासही।
लील चक्र मध्य काल कर्मम्, आवत दम कुं फांसही।6।
त्रिकुटी कमल परम हंस पूर्ण, सतगुरु समरथ आप है।
मन पौना सम सिंध मेलो, सुरति निरति का जाप है।7।
सहंस कमल दल आप साहिब, ज्यूं फूलन मध्य गन्ध है।
पूर रह्या जगदीश जोगी, सत् समरथ निर्बन्ध है।।8।।
सत सुकृत अविगत कबीर
ओ3म् ओ3म् ओ3म् ओ3म्
किलियम् किलियम् किलियम् किलियम्
हरियम् हरियम् हरियम् हरियम्
श्रीयम् श्रीयम् श्रीयम् श्रीयम्
सोहं सोहं सोहं सोहं
सत्यम् सत्यम् सत्यम् सत्यम्
अभय पद गायत्री पठल पठन्ते,
अर्थ धर्म काम मोक्ष पूर्ण फल लभन्ते।
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