Saturday, 13 December 2025

न प्राण में, न पिंड में, न श्वास मे

मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में |

ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकांत निवास में|
ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में||1||

ना मैं जप में, ना मैं तप में, ना व्रत उपवास में|
ना मैं क्रिया कर्म में रहता, ना मैं योग संन्यास में ||2||

न प्राण में, न पिंड में, न ब्रह्माण्ड आकाश में|
न मैं त्रिकुटी भंवर गुफा में, सब श्वासन के श्वास में ||3||

खोजी होए तुरत मिल जायुं, एक पल ही की तलाश में|
कहे कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूं विश्वास में ||4||

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