प्रमाण के लिए पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहिब के पृष्ठ नं. 59.60 पर सिरी राग महला 1 (शब्द नं.11)
बिन गुर प्रीति न ऊपजै हउमै मैलु न जाइ।।
सोहं आपु पछाणीऐ सबदि भेदि पतीआइ।।
गुरमुखि आपु पछाणीऐ अवर कि करे कराइ।।
मिलिआ का किआ मेलीऐ सबदि मिले पतीआइ।।
मनमुखि सोझी न पवै वीछुडि़ चोटा खाइ।।
नानक दरु घरु एकु है अवरु न दूजी जाइ।।
प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 84 पर राग भैरव - महला 1 - पौड़ी नं. 32
साध संगति मिल ज्ञानु प्रगासै। साध संगति मिल कवल बिगासै।।
साध संगति मिलिआ मनु माना। न मैं नाह ऊँ-सोहं जाना।।
सगल भवन महि एको जोति। सतिगुर पाया सहज सरोत।।
नानक किलविष काट तहाँ ही। सहजि मिलै अंमिृत सीचाही।।32।।
प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 3 पर गौड़ी रंगमाला जोग निधि - महला 1 - पौड़ी नं. 17
पूर्ब फिरि पच्छम कौ तानै। अजपा जाप जपै मनु मानै।।
अनहत सुरति रहै लिवलाय। कहु नानक पद पिंड समाय।।17।।
प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 4 पर गौड़ी रंगमाला जोग निधि - महला 1 - पौड़ी नं. 28
सोहं हंसा जाँ का जापु। इहु जपु जपै बढ़ै परतापु।।
अंमि न डूबै अगनि न जरै। नानक तिंह घरि बासा करै।।28।।
प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 5 पर गौड़ी रंगमाला जोग निधि - महला 1 - पौड़ी नं. 38
सोहं हंसा जपु बिन माला। तहिं रचिआ जहिं केवल बाला।।
गुर मिलि नीरहिं नीर समाना। तब नानक मनूआ गगनि समाना।।38।।
प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 71 पर रामकली - महला 1 - पौड़ी नं. 42
अैसा संम्रथु को नही किसु पहि करउँ बिनंतू
पूरा सतिगुर सेव तूँ गुरमति सोहं मंतू42।।
प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 127 पर रामकली - महला 1 - पौड़ी नं. 27
बिन संजम बैराग न पाया। भरमतू फिरिआ जन्म गवाया।।
क्या होया जो औध बधाई। क्या होया जु बिभूति चढ़ाई।।
क्या होया जु सिंगी बजाई। क्या होया जु नाद बजाई।।
क्या होया जु कनूआ फूटा। क्या होया जु ग्रहिते छूटा।।
क्या होया जु उश्न शीत सहै। क्या होया जु बन खंड रहै।।
क्या होया जो मोनी होता। क्या होया जो बक बक करता।।
सोहं जाप जपै दिन राता। मन ते त्यागै दुबिधा भ्रांता।।
आवत सोधै जावत बिचारै। नौंदर मूँदै तषते मारै।।
दे प्रदक्खणाँ दस्वें चढ़ै। उस नगरी सभ सौझी पड़ै।।
त्रौगुण त्याग चैथै अनुरागी। नानक कहै सोई बैरागी।।27।।
पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहिब के पृष्ठ नं. 1092.1093 पर राग मारू महला 1 - पौड़ी नं. 1
हउमै करी ता तू नाही तू होवहि हउ नाहि।।
बूझहु गिआनी बूझणा एह अकथ कथा मन माहि।।
बिनु गुर ततू न पाईऐ अलखु वसै सभ माहि।।
सतिगुरु मिलै त जाणीऐ जां सबदु वसै मन माहि।।
आपु गइआ भ्रमु भउ गइआ जनम मरन दुख जाहि।।
गुरमति अलखु लखाईऐ ऊतम मति तराहि।।
नानक सोहं हंसा जपु जापहु त्रिभवण तिसै समाहि।।
जो इन सर्व संतों की वाणी (ग्रन्थों) में प्रमाण है तथा कबीर पंथी शब्दावली में सत्यनाम ‘ऊँ-सोहं‘ के जाप का प्रमाण है। वह भी पूरे संत जिसको नाम देने का अधिकार हो, से ही लेना चाहिए।
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