भक्ति बीज पलटै नहीं, युग जांही असंख।
सांई सिर पर राखियो, चैरासी नहीं शंक।।
घीसा आए एको देश से, उतरे एको घाट।
घीसा आए एको देश से, उतरे एको घाट।
समझों का मार्ग एक है, मूर्ख बारह बाट।।
कबीर भक्ति बीज पलटै नहीं, आन पड़ै बहु झोल।
जै कंचन बिष्टा परै, घटै न ताका मोल।।
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