Thursday, 16 January 2025

कर नैनों दीदार महल में प्यारा है

कबीर साहिब ने अपनी रचना कर नैनों दीदार महल में प्यारा है’ में
सब कमलों का वर्णन विस्तार पूर्वक इस प्रकार किया है-


कर नैनो दीदार महल में प्यारा है ॥टेक॥
काम क्रोध मद लोभ बिसारोसील संतोष छिमा सत धारो ।
मद्य मांस मिथ्या तजि डारोहो ज्ञान घोड़े असवारभरम से न्यारा है ॥1
धोती नेती वस्ती पाओआसन पद्म जुगत से लाओ ।
कुंभक कर रेचक करवाओपहिले मूल सुधार कारज हो सारा है ॥2
मूल कँवल दल चतुर बखानोकलिंग जाप लाल रंग मानो ।
देव गनेस तह रोपा थानोरिध सिध चँवर ढुलारा है ॥3
स्वाद चक्र षट्दल बिस्तारोब्रह्मा सावित्री रूप निहारो ।
उलटि नागिनी का सिर मारोतहां शब्द ओंकारा है ॥4
नाभी अष्टकँवल दल साजासेत सिंहासन बिस्नु बिराजा ।
हिरिंग जाप तासु मुख गाजालछमी सिव आधारा है ॥5
द्वादस कँवल हृदय के माहींजंग गौर सिव ध्यान लगाई ।
सोहं शब्द तहां धुन छाईगन करै जैजैकारा है ॥6
षोड़श दल कँवल कंठ के माहींतेहि मध बसे अविद्या बाई ।
हरि हर ब्रह्मा चँवर ढुराईजहं शारिंग नाम उचारा है ॥7
ता पर कंज कँवल है भाईबग भौरा दुह रूप लखाई ।
निज मन करत तहां ठुकराईसौ नैनन पिछवारा है ॥8
कंवलन भेद किया निर्वारायह सब रचना पिण्ड मंझारा ।
सतसंग कर सतगुरु सिर धारावह सतनाम उचारा है ॥9
आंख कान मुख बंद कराओ अनहद झिंगा सब्द सुनाओ ।
दोनों तिल इकतार मिलाओतब देखो गुलजारा है ॥10
चंद सूर एकै घर लाओसुषमन सेती ध्यान लगाओ ।
तिरबेनी के संघ समाओभोर उतर चल पारा है ॥11
घंटा संख सुनो धुन दोई सहस कँवल दल जगमग होई ।
ता मध करता निरखो सोईबंकनाल धस पारा है ॥12
डाकिन साकिनी बहु किलकारेंजम किंकर धर्म दूत हकारें ।
सत्तनाम सुन भागें सारेजब सतगुरु नाम उचारा है ॥13
गगन मंडल विच उर्धमुख कुइआगुरुमुख साधू भर भर पीया ।
निगुरे प्यास मरे बिन कीयाजा के हिये अंधियारा है ॥14
त्रिकुटी महल में विद्या साराघनहर गरजें बजे नगारा ।
लाला बरन सूरज उजियाराचतुर कंवल मंझार सब्द ओंकारा है ॥15
साध सोई जिन यह गढ़ लीनानौ दरवाजे परगट चीन्हा ।
दसवां खोल जाय जिन दीन्हाजहां कुंफुल रहा मारा है ॥16
आगे सेत सुन्न है भाईमानसरोवर पैठि अन्हाई ।
हंसन मिल हंसा होइ जाईमिलै जो अमी अहारा है ॥17
किंगरी सारंग बजै सिताराअच्छर ब्रह्म सुन्न दरबारा ।
द्वादस भानु हंस उजियाराखट दल कंवल मंझार सब्द रारंकारा है ॥18
महासुन्न सिंध बिषमी घाटीबिन सतगुर पावै नाही बाटी ।
ब्याघर सिंह सरप बहु काटीतहं सहज अचिंत पसारा है ॥19
अष्ट दल कंवल पारब्रह्म भाईदाहिने द्वादस अचिंत रहाई ।
बायें दस दल सहज समाईयूं कंवलन निरवारा है ॥20
पांच ब्रह्म पांचों अंड बीनोपांच ब्रह्म निःअक्षर चीन्हो ।
चार मुकाम गुप्त तहं कीन्होजा मध बंदीवान पुरुष दरबारा है ॥21
दो पर्बत के संध निहारोभंवर गुफा ते संत पुकारो ।
हंसा करते केल अपारोतहां गुरन दरबारा है ॥22
सहस अठासी दीप रचायेहीरे पन्ने महल जड़ाये ।
मुरली बजत अखंड सदायेतहं सोहं झुनकारा है ॥23
सोहं हद्द तजी जब भाईसत्त लोक की हद पुनि आई ।
उठत सुगंध महा अधिकाईजा को वार न पारा है ॥24
षोड़स भानु हंस को रूपाबीना सत धुन बजै अनूपा ।
हंसा करत चंवर सिर भूपासत्त पुरुष दरबारा है ॥25
कोटिन भानु उदय जो होईएते ही पुनि चंद्र लखोई ।
पुरुष रोम सम एक न होईऐसा पुरुष दीदारा है ॥26
आगे अलख लोक है भाईअलख पुरुष की तहं ठकुराई ।
अरबन सूर रोम सम नाहींऐसा अलख निहारा है ॥27
ता पर अगम महल इक साजाअगम पुरुष ताहि को राजा ।
खरबन सूर रोम इक लाजाऐसा अगम अपारा है ॥28
ता पर अकह लोक हैं भाईपुरुष अनामी तहां रहाई ।
जो पहुँचा जानेगा वाहीकहन सुनन से न्यारा है ॥29
काया भेद किया निर्बारायह सब रचना पिंड मंझारा ।
माया अवगति जाल पसारासो कारीगर भारा है ॥30
आदि माया कीन्ही चतुराईझूठी बाजी पिंड दिखाई ।
अवगति रचन रची अंड माहींता का प्रतिबिंब डारा है ॥31
सब्द बिहंगम चाल हमारीकहैं कबीर सतगुर दइ तारी ।
खुले कपाट सब्द झुनकारीपिंड अंड के पार सो देस हमारा है ॥32

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