Thursday, 31 October 2024

Shabd bina surti aandri

Kabir, Shabd bina surti aandri 
Kaho kahan ko jaye
Dwar na paave shabd ka
Fir fir bhatka khaye.

Tuesday, 29 October 2024

ज्ञान इतना सुना दिया, जैसे बालू रेत

कबीर, ज्ञान इतना सुना दिया, 
जैसे बालू रेत। 
कहे कबीर मैं क्या करूं, 
जीव न समझा एक।।

निर्गुन आागे सर्गुण नाचं, बाजे सोहंग तूरा

कबीर, निरगुन आागे सरगुन नाचं,
वाजै सोहंग तूरा ।
चेला के पाँव गुरूजी लागैं,
यहीं अचम्भा पूरा ।।

भय निमग्न निज रूप में, भूला साहेब रूप

सदाफल, भय निमग्न निज रूप में, भूला साहेब रूप ।
अभिमानी अज्ञान से, मर्मत विविध स्वरूप ।।।

पाँच शबद पाँच हैं मुद्रा सो निश्चय कर जाना, आगे पुरुष पुरान निःअक्षर तिनकी खबर न जाना

पाँच शब्द पाँच हैं मुद्रा काया बीच ठिकाना।

जो जिहसंक आराधन करता सो तिहि करत बखाना।।
शब्द निरंजन चाँचरी मुद्रा है नैनन के माँही।
ताको जाने गोरख योगी महा तेज तप माँही।।
शब्द ओंकार भूचरी मुद्रा त्रिकुटी है स्थाना।
व्यास देव ताहि पहिचाना चाँद सूर्य तिहि जाना।।
सोहं शब्द अगोचरी मुद्रा भंवर गुफा स्थाना।
सुकदेव मुनी ताहि पहिचाना सुन अनहद को काना।।
शब्द ररंकार खैंचरी मुद्रा दसवें द्वार ठिकाना।
ब्रह्मा विष्नु महेश आदि लो ररंकार पहिचाना।।
शक्ति शबद ध्यान उनमुनी मुद्रा बसै आकाश सनेही।
झिलमिल झिलमिल जोति दिखावै जाने जनक विदेही।।
शबद ही काल कलंदर कहीये शबद ही मर्म भुलाया।
पाँच शबद की आशा में सर्वस मूल गमाया।।
पाँच शबद पाँच हैं मुद्रा सो निश्चय कर जाना।
आगे पुरुष पुरान निःअक्षर तिनकी खबर न जाना।।

सोहं ऊपर और है सतसुकरत एक नाम।
सब जीवों का वास है सही बस्ती सही ठाम।
नामा छीपा ऊँ तारी पीछे सोहं भेद उचारी।
सारशबद पाया जद लोई आवा गमन बहुरि ना होई।।

सारनाम हम भाखि सुनाया।
ये मूरख जीव मर्म ना पाया।
है निःशबद शबद से कहीयौ।


संतो शब्दई शब्द बखाना।।टेक।।
शब्द फांस फँसा सब कोई शब्द नहीं पहचाना।।
प्रथमहिं ब्रह्म स्वं इच्छा ते पाँचै शब्द उचारा।
सोहं, निरंजन, रंरकार, शक्ति और ओंकारा।।
पाँचै तत्व प्रकृति तीनों गुण उपजाया।
लोक द्वीप चारों खान चैरासी लख बनाया।।
शब्दइ काल कलंदर कहिये शब्दइ भर्म भुलाया।।
पाँच शब्द की आशा में सर्वस मूल गंवाया।।
शब्दइ ब्रह्म प्रकाश मेंट के बैठे मूंदे द्वारा।
शब्दइ निरगुण शब्दइ सरगुण शब्दइ वेद पुकारा।।
शुद्ध ब्रह्म काया के भीतर बैठ करे स्थाना।
ज्ञानी योगी पंडित औ सिद्ध शब्द में उरझाना।।
पाँचइ शब्द पाँच हैं मुद्रा काया बीच ठिकाना।
जो जिहसंक आराधन करता सो तिहि करत बखाना।।
शब्द निरंजन चांचरी मुद्रा है नैनन के माँही।
ताको जाने गोरख योगी महा तेज तप माँही।।
शब्द ओंकार भूचरी मुद्रा त्रिकुटी है स्थाना।
व्यास देव ताहि पहिचाना चांद सूर्य तिहि जाना।।
सोहं शब्द अगोचरी मुद्रा भंवर गुफा स्थाना।
शुकदेव मुनी ताहि पहिचाना सुन अनहद को काना।।
शब्द रंरकार खेचरी मुद्रा दसवें द्वार ठिकाना।
ब्रह्मा विष्णु महेश आदि लो रंरकार पहिचाना।।
शक्ति शब्द ध्यान उनमुनी मुद्रा बसे आकाश सनेही।
झिलमिल झिलमिल जोत दिखावे जाने जनक विदेही।।
पाँच शब्द पाँच हैं मुद्रा सो निश्चय कर जाना।
आगे पुरुष पुरान निःअक्षर तिनकी खबर न जाना।।
नौ नाथ चैरासी सिद्धि लो पाँच शब्द में अटके।
मुद्रा साध रहे घट भीतर फिर ओंधे मुख लटके।।
पाँच शब्द पाँच है मुद्रा लोक द्वीप यमजाला।
कहैं कबीर अक्षर के आगे निःअक्षर का उजियाला।।



पाँचों नाम काल के जानौ तब दानी मन संका आनौ।
सुरति निरत लै लोक सिधाऊँ, आदिनाम ले काल गिराऊँ।
सतनाम ले जीव उबारी, अस चल जाऊँ पुरुष दरबारी।।
कबीर, कोटि नाम संसार में , इनसे मुक्ति न हो।
सार नाम मुक्ति का दाता, वाको जाने न कोए।।


संतों सतगुरु मोहे भावै, जो नैनन अलख लखावै।।
ढोलत ढिगै ना बोलत बिसरै, सत उपदेश दृढ़ावै।।
आंख ना मूंदै कान ना रूदैं ना अनहद उरझावै।
प्राण पूंज क्रियाओं से न्यारा, सहज समाधी बतावै।।



Sunday, 27 October 2024

मेरा तेरा मनुआ कैसे इक होई रे

कबीर, मेरा तेरा मनुआ कैसे इक होई रे। 
मैं कहता हौं आँखिन देखी, तू कहता कागद की लेखी। 
मैं कहता सुरझावनहारी, तू राख्यौ उरझाई रे। 
मैं कहता तू जागत रहियो, तू रहता है सोई रे। 
मैं कहता निर्मोही रहियो, तू जाता है मोही रे। 
जुगन जुगन समुझावत हारा, कही मानत कोई रे। 
तू तो रंडी फिरै बिहंडी, सब धन डारे खोई रे। 
सतगुरु धारा निर्मल बाहै, वामैं काया धोई रे। 
कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे॥ 

मैं तो फिरुँ ढूंढता,अपने हीरे माणिक लाल

कबीर, गोता मारुं स्वर्ग में,
जा बैठूं पाताल ।
मैं तो फिरुँ ढूंढता,
अपने हीरे माणिक लाल ।।

कबीर का घर सिखर पर

कमाली, कबीर का घर सिखर पर,
जहाँ सिलहली गैल ।
पांव न टिकै पिपील का,
पंडित लादे बैल ।।

मैं तो फिरूँ ढूंढता, अपने हीरे माणिक लाल

कबीर, गोता मारू स्वर्ग में,
जा बैठूं पाताल ।
मैं तो फिरूँ ढूंढता,
अपने हीरे माणिक लाल ।।

Saturday, 26 October 2024

जीव बहा मीले नहीं

सदाफल, जीव बहा मीले नहीं, जीव सनातन रूप ।
कर्म वासना साथ वह, फिर आवे भावकूप।।