Kabir Sahib
Wednesday, 21 September 2022
निरगुण सरगुण दवन्द पसारा
कबीर, निरगुण सरगुण दवन्द पसारा ।
दोनो पड़ गऐ काल की धारा ।।
दादू, कोई निरगुण मे रीझ रहा,
कोई सरगुण ठहराऐ ।
दादू चाल कबीर की,
मोसे कही न जाऐ ।।
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