Monday, 31 March 2025

Mirabai, Ravidas aur Kabir

सन 1516 की बात सुनो, मीरा ने भक्ति करी भारी।
बीस वर्ष की उमर मे, मीरा पर विपदा पड़ी भारी।।

मीरा को राणा ने त्रास दई, घर छोड़ के बाई चाल पड़ी।
बंधन तोड़ मोह माया के, गिरधर को ढूंढन चाल पड़ी।।

चलते चलते दिन बीते, मीरा ऐक सतसंग मे पहुंच गई।
जहां फरमा उपदेश रहे, रविदास कबीर से भेंट हुई।।

मीरा ने प्रणाम किया, और प्रश्न पूछा सब संतों से।
गिरधर के दर्शन नहीं हुऐ, क्या भूल हुई मेरी भक्ति मे।।

सत्गुरु बोले तेरी भक्ति की, महिमा यह जग जानेगा।
गिरधर प्रेम भाव, यह सारा जग पहचानेगा।।

मीरा बोली वडभाग मेरे, सत्गुरु जी दर्श भऐ थारे।
थारी शरन गहूं कुछ ज्ञान देउ, गिरधर न मिले हमको महारे।।

साहिब कबीर मुसकाते हैं, रविदास को बेटी तुम गुरु करो।
दीक्षा नाम की करो धारण, निस दिन प्रभु नाम का जाप करो।।

रविदास कहे तुम सत्गुरु हो, देते क्यों तुम ही नाम नहीं।
मेवाड़ से मीरा ने आके, इक तुमरी शरण गही।।

गुरु बिना कोई भेद न पावे, न हरी की पावे निशानी।
रविदास कबीरा ऐक भऐ हैं, कोई न सके पिछानी।।

मारग दर्षण कौन करेगा, समय रहा है कम मेरा।
चलने का अब ख्याल है अपना, यहां चार दिनों का है डेरा।।

मीरा जैसी शिष्य नहीं, गुरु नहीं कोई तुम जैसा।
संसार मे दोनो अमर हो, यशगान रहे जो ऐसा।।

पूजेगा संसार तुमहे, सूरज चांद रहेंगे जब तक।
मीरा के गुरु रविदासा, गूंज रहेगी ये तब तक।।

गुरु रविदास ने नाम दिया, मुख से हरि नाम उच्चारा है।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, दूजा न कोई सहारा है।।

कहें गुरुजी सुनियो मीरा, ये मूरत गिरधर नाहीं है।
गिरधर को तूं ढूंढत है, सो तो दिल तेरे माहीं है।।

राम नाम से बंधन टूटे, राम ही सबका आधारा है।
सत्गुरु संत और अवतारा, सबने राम उच्चारा है।।

अपार राम की महिमा, कोई कहन न पाया है।
वेद कुराण खोज न पाए, नेति नेति गुण गाया है।।

बोले कबीर सुनो तुम मीरा, यह इक अकथ कहानी है।
राम ही कबीर कृष्ण रविदासा, राम ही मीरा दीवानी है।।

राम ही सारा खेल रचाया, राम ही खेल खिलाड़ी है।
राम ही वृक्ष फूल फल छाया, राम ही बोवे बाढी है।।

गुरु रविदास कहें मीरा से, राम ही सब मे समाया है।
अपने अनुभव से तुम जानो, गिरधर भी राम बन आया है।।

मीरा ने तब ध्यान धरा, मन मे हरी नाम उच्चारा है।
दीदार हुआ दिल मे प्रभु का, जब राम नाम संभारा है।।

आखें खोली जब मीरा ने, तो साहिब कबीर पिछाणा है।
मीराबाई धन्य हुई, जिन रविदास सत्गुरु जाना है।।

प्रेम उठा सत्गुरु की खातिर, आंख से छलक उठे आंसू।
नमस्कार सत्गुरु को किया, चरणकमल धोऐ जांसू।।

प्रेम मगन हो नाच उठी, गुरु मिले रविदास सई।
दासी के सिर पे हाथ रख, दीदार अलख का करा दिया।।

धन्य भाग मेरे सुनो सखीरी, राम रतन धन पाऐ हैं।
वस्तु अमोलि हमे मिली है, गुरु रविदास बताऐ हैं।।

हे मेरे सत्गुरु सांच कहूं मै, अब मैने राम पिछाना है।
सब के घट मे राम ही बोले, राम ही गिरधर जाना है।।

राम ही कबीर और कबीर कृष्ण हैं, सोई रविदास मे बूठा है।
सांचा ज्ञान यही इक साहिब, बाकी सब कुछ जूठा है।।

मीरा के प्रभु गिरधर नागर, जो मेरे दिल मे आवे है।
और देव को पूजूं नाहीं, अब कुछ मन नहीं भावे है।।

मीरा छोड़ चली प्रतिमा, और इकतारा हाथ लिये।
निर्गुण सर्गुण दोउ से नयारे, गोविंद को धर अपने हिय।।

कहें कबीर सुनो रविदास, तुम धन्य भऐ जो मीरा पाई।
जग सारा वंदन करे तुमहे, राम भक्ति मीरा गाई।।

Sunday, 30 March 2025

Painti Akhri

सार शब्द गरजे ब्रहमंडा

नाम अखंड और सब खंडा ।
कबीर, सार शब्द गरजे ब्रहमंडा ।।

प्रेमी होय सोई पिये

कबीर भाटी प्रेम की,
सब कोई बैठे आय ।
प्रेमी होय सोई पिये,
और से पिया न जाय ।।

पतिबरता का अंग

दाता के घर धन घनो,
शूरा के सिर बीस ।
पतिबरता के अंग पे,
रीझ रहे जगदीश ।।

Friday, 28 March 2025

कबीर, हम हैं मूल

ताहि न यह जग जाने भाई। तीन देव में ध्यान लगाई।।
तीन देव की करहीं भक्ति। जिनकी कभी न होवे मुक्ति।।
तीन देव का अजब खयाला। देवी-देव प्रपंची काला।।
इनमें मत भटको अज्ञानी। काल झपट पकड़ेगा प्राणी।।
तीन देव पुरुष गम्य न पाई। जग के जीव सब फिरे भुलाई।।
जो कोई सतनाम गहे भाई। जा कहैं देख डरे जमराई।।
ऐसा सबसे कहीयो भाई। जग जीवों का भरम नशाई।।
कह कबीर हम सत कर भाखाहम हैं मूल शेष डारतना रू शाखा।।

साखी: रूप  देख  भरमो  नहींकहैं कबीर विचार। 
        अलख पुरुष हृदये लखेसोई उतरि है पार।।

सत्यलोक

कबीर कलियुग कठिन है

कबीर कलि कठिन है, साधु न माने कोय । 
कामी क्रोधी मस्खरा, तिन्ह का आदर होय ॥

आत्म प्राण उद्धार हीं, ऐसा धर्म नहीं और

आत्म प्राण उद्धार हींऐसा धर्म नहीं और। 
कोटि अध्वमेघ यज्ञसकल समाना भौर।।

भक्ति बीज पलटै नहीं

भक्ति बीज पलटै नहींयुग जांही असंख।
सांई सिर पर राखियोचैरासी नहीं शंक।।
घीसा आए एको देश सेउतरे एको घाट।
समझों का मार्ग एक हैमूर्ख बारह बाट।।
कबीर भक्ति बीज पलटै नहींआन पड़ै बहु झोल।
जै कंचन बिष्टा परैघटै न ताका मोल।।

स्वांसा पारस भेद हमारा

गरीबस्वांसा पारस भेद हमाराजो खोजे सो उतरे पारा।
स्वांसा पारा आदि निशानीजो खोजे सो होए दरबानी।
स्वांसा ही में सार पदपद में स्वांसा सार।
दम देही का खोज करोआवागमन निवार।।
गरीबस्वांस सुरति के मध्य हैन्यारा कदे नहीं होय।
सतगुरु साक्षी भूत कूंराखो सुरति समोय।।
गरीबचार पदार्थ उर में जोवैसुरति निरति मन पवन समोवै।
सुरति निरति मन पवन पदार्थ(नाम)करो इक्तर यार।
द्वादस अन्दर समोय लेदिल अंदर दीदार।

पाँचों नाम काल के जानौ

पाँचों नाम काल के जानौ तब दानी मन संका आनौ।
सुरति निरत लै लोक सिधाऊँआदिनाम ले काल गिराऊँ।
सतनाम ले जीव उबारीअस चल जाऊँ पुरुष दरबारी।।

सार शब्द मुक्ति का दाता

कबीर सोहं सोहं जप मुएवृथा जन्म गवाया।
सार शब्द मुक्ति का दाताजाका भेद नहीं पाया।।
कबीर जो जन होए जौहरीसो धन ले विलगाय।
सोहं सोहं जपि मुएमिथ्या जन्म गंवाया।।
कबीर कोटि नाम संसार मेंइनसे मुक्ति न होय।
आदि नाम (सारनाम) गुरु जाप हैबुझै बिरला कोय।।

गायत्री मंत्र

ज्ञान सागर अति उजागरनिर्विकार निरंजनं।
ब्रह्मज्ञानी महाध्यानीसत सुकृत दुःख भंजनं।1
मूल चक्र गणेश बासारक्त वर्ण जहां जानिये।
किलियं जाप कुलीन तज सबशब्द हमारा मानिये।2
स्वाद चक्र ब्रह्मादि बासाजहां सावित्राी ब्रह्मा रहैं।
3म जाप जपंत हंसाज्ञान जोग सतगुरु कहैं।3
नाभि कमल में विष्णु विशम्भरजहां लक्ष्मी संग बास है।
हरियं जाप जपन्त हंसाजानत बिरला दास है।4
हृदय कमल महादेव देवंसती पार्वती संग है।
सोहं जाप जपंत हंसाज्ञान जोग भल रंग है।5
कंठ कमल में बसै अविद्याज्ञान ध्यान बुद्धि नासही।
लील चक्र मध्य काल कर्मम्आवत दम कुं फांसही।6
त्रिकुटी कमल परम हंस पूर्णसतगुरु समरथ आप है।
मन पौना सम सिंध मेलोसुरति निरति का जाप है।7
सहंस कमल दल आप साहिबज्यूं फूलन मध्य गन्ध है।
पूर रह्या जगदीश जोगीसत् समरथ निर्बन्ध है।।8।।
सत सुकृत अविगत कबीर
3म् ओ3म् ओ3म् ओ3म्
किलियम् किलियम् किलियम् किलियम्
हरियम् हरियम् हरियम् हरियम्
श्रीयम् श्रीयम् श्रीयम् श्रीयम्
सोहं सोहं सोहं सोहं
सत्यम् सत्यम् सत्यम् सत्यम्
अभय पद गायत्री पठल पठन्तेअर्थ धर्म काम मोक्ष पूर्ण फल लभन्ते।

सार शब्द मथि लीजे

शब्द हमारा आदि कासुनि मत जाहु सरख।
जो चाहो निज तत्व कोशब्दे लेहु परख।।9।।
शब्द विना सुरति आँधरीकहो कहाँको जाय।
द्वार न पावे शब्द काफिर फिर भटका खाय।।10।।
शब्द शब्द बहुअन्तरासार शब्द मथि लीजे।
कहँ कबीर जहँ सार शब्द नहींधिग जीवन सो जीजे।।11।।

कबीर, वेद हमारा भेद है

कबीरवेद हमारा भेद हैहम नहीं वेदों माहिं।
जौन वेद में हम रहैंवो वेद जानते नाहीं।

घर घर होय पुरुषकी सेवा। पुरुष निरंजन कहे न भेवा।।
ताकी भगति करे संसारा। नर नारी मिल करें पुकारा।।

सनकादिक नारद मुख गावें। ब्रह्मा विष्णु महेश्वर ध्यावें।
मुनी व्यास पारासर ज्ञानी। प्रहलाद और बिभीषण ध्यानी।।

द्वादस भगत भगती सो रांचे। दे तारी नर नारी नाचे।।
जुग जुग भगतभये बहुतेरे। सबे परे काल के घेरे।।

काहू भगत न रामहिं पाया। भगती करत सर्व जन्म गंवाया।।

केवल नाम कबीर है

बहुत गुरु संसार रहितघर कोइ न बतावै।
आपन स्वारथ लागिसीस पर भार चढावै।।
सार शब्द चीन्हे नहींबीचहिं परे भुलाय।
सत्त सुकृत चीन्हे बिनासब जग काल चबाय।।18।।
यह लीला निर्वानभेद कोइ बिरला जानै।
सब जग भरमें डारमूल कोइ बिरला माने।।
मूल नाम सत पुरुष कापुहुप द्वीपमें बास।
सतगुरु मिलैं तो पाइयेपूरन प्रेम बिलास।।19।।
नाम सनेही होयदूत जम निकट न आवै।
परमतत्त्व पहिचानिसत्त साहेब गुन गावै।।
अजर अमर विनसे नहींसुखसागरमें बास।
केवल नाम कबीर है गावे धनिधर्मदास।।20।।

कबीर शब्दावली (पृष्ठ नं. 220) से सहाभार

नानक, सोहं हंसा जपु जापहु त्रिभवण तिसै समाहि

हउमै करी ता तू नाही तू होवहि हउ नाहि।।
बूझहु गिआनी बूझणा एह अकथ कथा मन माहि।।
बिनु गुर ततू न पाईऐ अलखु वसै सभ माहि।।
सतिगुरु मिलै त जाणीऐ जां सबदु वसै मन माहि।।
आपु गइआ भ्रमु भउ गइआ जनम मरन दुख जाहि।।
गुरमति अलखु लखाईऐ ऊतम मति तराहि।।
नानक सोहं हंसा जपु जापहु त्रिभवण तिसै समाहि।।

गुरु ग्रन्थ साहिब के पृष्ठ नं. 1092.1093 पर राग मारू महला 1 - पौड़ी नं. 1

सोहं जाप जपै दिन राता

बिन संजम बैराग न पाया। भरमतू फिरिआ जन्म गवाया।।
क्या होया जो औध बधाई। क्या होया जु बिभूति चढ़ाई।।
क्या होया जु सिंगी बजाई। क्या होया जु नाद बजाई।।
क्या होया जु कनूआ फूटा। क्या होया जु ग्रहिते छूटा।।
क्या होया जु उश्न शीत सहै। क्या होया जु बन खंड रहै।।
क्या होया जो मोनी होता। क्या होया जो बक बक करता।।
सोहं जाप जपै दिन राता। मन ते त्यागै दुबिधा भ्रांता।।
आवत सोधै जावत बिचारै। नौंदर मूँदै तषते मारै।।
दे प्रदक्खणाँ दस्वें चढ़ै। उस नगरी सभ सौझी पड़ै।।
त्रौगुण त्याग चैथै अनुरागी। नानक कहै सोई बैरागी।।


प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 127 पर रामकली - महला 1 - पौड़ी नं. 27

सोहं आपु पछाणीऐ सबदि भेदि पतीआइ

बिन गुर प्रीति न ऊपजै हउमै मैलु न जाइ।।
सोहं आपु पछाणीऐ सबदि भेदि पतीआइ।।
गुरमुखि आपु पछाणीऐ अवर कि करे कराइ।।
मिलिआ का किआ मेलीऐ सबदि मिले पतीआइ।।
मनमुखि सोझी न पवै वीछुडि़ चोटा खाइ।।
नानक दरु घरु एकु है अवरु न दूजी जाइ।।

प्रमाण के लिए पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहिब के पृष्ठ नं. 59.60 पर सिरी राग महला 1 (शब्द नं.11)

नानक कहै सोई बैरागी

बिन संजम बैराग न पाया। भरमतू फिरिआ जन्म गवाया।।
क्या होया जो औध बधाई। क्या होया जु बिभूति चढ़ाई।।
क्या होया जु सिंगी बजाई। क्या होया जु नाद बजाई।।
क्या होया जु कनूआ फूटा। क्या होया जु ग्रहिते छूटा।।
क्या होया जु उश्न शीत सहै। क्या होया जु बन खंड रहै।।
क्या होया जो मोनी होता। क्या होया जो बक बक करता।।
सोहं जाप जपै दिन राता। मन ते त्यागै दुबिधा भ्रांता।।
आवत सोधै जावत बिचारै। नौंदर मूँदै तषते मारै।।
दे प्रदक्खणाँ दस्वें चढ़ै। उस नगरी सभ सौझी पड़ै।।
त्रौगुण त्याग चैथै अनुरागी। नानक कहै सोई बैरागी।।

नानक, गुरमति सोहं मंत्र

नानक, अैसा संम्रथु को नही किसु पहि करउँ बिनंतू
पूरा सतिगुर सेव तूँ गुरमति सोहं मंत्र।।

प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 5 पर गौड़ी रंगमाला जोग निधि - महला 1 - पौड़ी नं. 38

नानक, सोहं हंसा जपु बिन माला

सोहं हंसा जपु बिन माला। तहिं रचिआ जहिं केवल बाला।।
गुर मिलि नीरहिं नीर समाना। तब नानक मनूआ गगनि समाना।।38।।

प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 5 पर गौड़ी रंगमाला जोग निधि - महला 1 - पौड़ी नं. 38

नानक, सोहं हंसा जाँ का जापु

सोहं हंसा जाँ का जापु। इहु जपु जपै बढ़ै परतापु।।
अंमि न डूबै अगनि न जरै। नानक तिंह घरि बासा करै।।

प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 4 पर गौड़ी रंगमाला जोग निधि - महला 1 - पौड़ी नं. 28

नानक, सोहं आपु पछाणीऐ

बिन गुर प्रीति न ऊपजै हउमै मैलु न जाइ।।
सोहं आपु पछाणीऐ सबदि भेदि पतीआइ।।
गुरमुखि आपु पछाणीऐ अवर कि करे कराइ।।
मिलिआ का किआ मेलीऐ सबदि मिले पतीआइ।।
मनमुखि सोझी न पवै वीछुडि़ चोटा खाइ।।
नानक दरु घरु एकु है अवरु न दूजी जाइ।।

स्वाँस

कबीरकहता  हूँ  कही  जात हूँकहूँ बजा कर ढोल।
स्वाँस जो खाली जात हैतीन लोक का मोल।।
स्वाँस उस्वाँस में नाम जपोव्यर्था स्वाँस मत खोय।
न   जाने   इस   स्वाँस  कोआवन  होके  न   होय।।

ऊँ-सोहं

प्रथमहिं मंदिर चैक पुराये । उत्तम आसन श्वेत बिछाये ।।
हंसा पग आसन पर दीन्हा । सतकबीर कही कह लीन्हा ।।
नाम प्रताप हंस पर छाजे । हंसहि भार रती नहिं लागे ।।
कहै कबीर सुनो धर्मदासा । ऊँ-सोहं शब्द प्रगासा ।।

नाम दान

तब  कबीर  अस कहेवे लीन्हाज्ञानभेद सकल कह दीन्हा ।।
धर्मदास   मैं  कहो   बिचारीजिहिते निबहै सब संसारी ।।
प्रथमहि शिष्य  होय जो आईता कहैं पान देहु तुम भाई ।।1।।
जब देखहु तुम  दृढ़ता  ज्ञानाता  कहैं  कहु शब्द प्रवाना ।।2।।
शब्द मांहि जब निश्चय आवैता कहैं ज्ञान अगाध सुनावै ।।3।।


बालक   सम  जाकर  है  ज्ञाना । तासों  कहहू  वचन    प्रवाना ।।1।।
जा  को  सूक्ष्म   ज्ञान   है  भाई । ता  को  स्मरन   देहु  लखाई ।।2।।
ज्ञान   गम्य  जा  को पुनि  होई । सार  शब्द जा को  कह  सोई ।।3।।
जा को होए दिव्य ज्ञान परवेशा । ताको कहे तत्व ज्ञान उपदेशा ।।4।।


कबीर सागर में अमर मूल बोध सागर पृष्ठ 265

आदि रमैनी (गरीबदास)

आदि रमैनी (गरीबदास)

आदिरमैनी अदली साराजा दिन होते धुंधकारा।
सतपुरुष कीन्हा प्रकाशाहम होते तखत कबीर खवासा।

मनमोहिनी सिरजी मायासतपुरुष एक ख्याल बनाया।
धर्मराय सिरजे दरबानीचौसठ जुग तप सेवा ठानी।

पुरुष प्रथ्वी जाकू दीनीराज करो देवा आधीनी।
इकीस ब्रह्माण्ड राज तुम दीन्हामन की इच्छा सब जुग लीन्हा।

मायामूल रूप एक छाजामोहि लिये जिनहू धर्मराजा।
धर्म का मन चंचलचित धारामन माया का रूप विचारा।

चंचल चेरी चपल चिरागाया के परसे सरबस जागा।
धर्मराय किया मन का भागीविषय वासना संग से जागी।

आदिपुरुष अदली अनरागीधर्मराय दिया दिल से त्यागी।
पुरुष लोक से दिया ढहाहीअगम दीप चल आये भाई।

सहजदास जिस दीप रहंताकारण कौन कौन कुल पंथा।
धर्मराय बोले दरबानीसुनो सहज दास ब्रह्मज्ञानी।

चौंसठ जुग हम सेवा कीन्हीपुरुष प्रथ्वी हम कू दीन्ही।
चंचलरूप भया मन बौरामनमोहिनी ठगिया भौंरा।

सतपुरुष के ना मन भायेपुरुष लोक से हम चलि आये।
अगरदीप सुनत बङभागीसहजदास मेटो मन पागी।

बोले सहजदास दिल दानीहम तो चाकर सत सहदानी।
सतपुरुष से अरज गुजारूँजब तुम्हार बिवाण उतारूँ।

सहजदास को कीया पयानासत्यलोक को लिया परवाना।
सतपुरुष साहिब सरबंगीअविगत अदली अचल अभंगी।

धर्मराय तुम्हरा दरबानीअगरदीप चलि गये प्रानी।
कौन हुकुम करी अरज अवाजाकहाँ पठावो उस धर्मराजा।

भई अवाज अदली एक सांचाविषयलोक जा तीन्यू बाचा।
सहज विमान चले अधिकाईछिन मा अगरदीप चलि आई।

हम तो अरज करी अनरागीतुम विषयलोक जावो बङभागी ।
धर्मराय के चले विमानामानसरोवर आये प्राना।

मानसरोवर रहन न पायेदरै कबीर थाना लाये।
बंकनाल की विषमी बाटीतहाँ कबीरा रोकी घाटी।

इन पाँचों मिल जगत बँधानालख चौरासी जीव संताना।
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर मायाधर्मराय का राज पठाया।

योह खोखापुर झूठी बाजीभिसति बैकुण्ठ दगा सी साजी।
क्रतिम जीव भुलाने भाईनिजघर की तो खबर न पाई।

सवा लाख उपजें नित हँसाएक लाख बिनसे नित अंशा।
उत्पति खपति प्रलय फ़ेरीहर्ष शोक जोरा जम जेरी।

पाँचों तत्व है प्रलय माहींसतगुण रजगुण तमगुण झांई।
आठों अंग मिली है मायापिण्ड ब्रह्माण्ड सकल भरमाया।

या में सुरत शब्द की डोरीपिण्ड ब्रह्माण्ड लगी है खोरी।
स्वांसा पारस गहि मन राखोखोल कपाट अमीरस चाखो।

सुनाऊँ हँस शब्द सुन दासाअगम दीप है अंग है वासा।
भवसागर जम दण्ड जमानाधर्मराय का है तलबाना।

पाँचों ऊपर पद की नगरीबाट विहंगम बंकी डगरी।
हमरा धर्मराय सों दावाभवसागर में जीव भरमावा।

हम तो कहें अगम की वानीजहाँ अविगत अदली आप बिनानी।
बन्दीछोङ हमारा नामअजर अमर है स्थीर ठांम।

जुगन जुगन हम कहते आयेजमजौरा से हँस छुटाये।
जो कोई माने शब्द हमाराभवसागर नहीं भरमे धारा।

या में सुरत शब्द का लेखातन अन्दर मन कहो कीन्ही देखा।
दास गरीब अगम की वानीखोजा हँसा शब्द सहदानी।

माया आदि निरंजन भाईआपै जाये आपै खाई।
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर चेलाओऽहम सोऽहं का है खेला।

शिखर सुन्न में धर्म अन्यायीजिन शक्ति डायन महल पठाई।
लाख ग्रास नित उठ दूतीमाया आदि तखत की कूती।

सवा लाख घङिये नित भांडेहँसा उतपति प्रलय डांडे।
ये तीनों चेला बटपारीसिरजे पुरुषा सिरजी नारी।

खोखापुर में जीव भुलायेस्वपना बहिस्त बैकुण्ठ बनाये।
यो हरहट का कुआ लोईया गल बँधया है सब कोई।

कीङी कुंजर और अवताराहरहट डोरी बँधे कई बारा।
अरब अलील इन्द्र हैं भाईहरहट डोरी बँधे सब आई।

शेष महेश गणेश्वर ताहीहरहट डोरी बँधे सब आहीं।
शुक्रादिक ब्रह्मादिक देवाहरहट डोरी बँधे सब खेवा।

कोटिक कर्ता फ़िरता देखाहरहट डोरी कहूँ सुन लेखा।  हरहट रहट
चतुर्भुजी भगवान कहावेहरहट डोरी बँधे सब आवे।

यो है खोखापुर को कुआया में पङा सो निश्चय मुआ।

माया काली नागिनीअपने जाये खात।
कुण्डली में छोङे नहींसौ बातों की बात।

अनन्त कोटि अवतार हैंमाया के गोविन्द।
कर्ता हो हो अवतरेबहुर पङे जग फ़ँद।

ब्रह्मा विष्णु महेश्वर मायाऔर धर्मराय कहिये।
इन पाँचों मिल प्रपंच बनायावाणी हमरी लहिये।

इन पाँचों मिल जीव अटकायेजुगन जुगन हम आन छुटाये।
बन्दीछोङ हमारा नामअजर अमर स्थीर है ठाम।

पीर पैगम्बर कुतुब औलियासुर नर मुनिजन ज्ञानी।
ये ताको राह न पायाजम के बँधे प्रानी।

धर्मराय की धूमा धामीजम पर जंग चलाऊँ।
जोरा को तो जान न दूँगाबाँध अदल घर लाऊँ।

काल अकाल दोऊ को मोसूँमहाकाल सिर मूँङूँ।
मैं तो तखत हजूरी हुकुमीचोर खोज के ढूँङूँ।

मूलमाया मग में बैठीहँसा चुन चुन खाई।
ज्योतिस्वरूपी भया निरंजनमैं ही कर्ता भाई।

सहस अठासी दीप मुनीश्वरबँधे मुला डोरी।
एत्या में जम का तलबानाचलिये पुरुष की शोरी।

मूला का तो माथा दागूँसत की मोहर करूँगा।
पुरुष दीप को हँस चलाऊँदरा न रोकन दूँगा।

हम तो बन्दी छोङ कहावाधर्मराय है चकवे।
सतलोक की सकल सुनावावाणी हमरी अखवे।

नौ लख पट्टन ऊपर खेलूँसाहदरे कू रोकूँ।
द्वादश कोटि कटक सब काटूँहँस पठाऊँ मोखूँ।

चौदह भुवन गमन है मेराजल थल में सरबंगी।
खालिक खलक खलक में खालिकअविगत अचल अभंगी।

अगर अलील चक्र है मेराजित से हम चल आये।
पाँचों पर परवाना मेराबाँध छुटावन्न धाये।

जहँ ओऽम ओंऽकार निरंजन नाहींब्रह्मा विष्णु वेद नहीं जाँहीं।
जहाँ करता नहीं जान भगवानाकाया माया पिण्ड न प्राणा।

पाँच तत्व तीनों गुण नाहींजोरा काल दीप नहिं जाही।
अमर करूँ सतलोक पठाऊँताते बन्दीछोङ कहाऊँ।

Monday, 24 March 2025

नीच जात परदेसी मेरा

नानक, नीच जात परदेसी मेरा,
छिन्न आवे तिल जावे ।
ताकि संगत नानक रहंदा ,
क्यूंकर मोड़ा पावे ।।

(नानक) वाह वाह कर दुनिया भरम के साथ बही


Saturday, 22 March 2025

Kabir aur Ravidas ji ki pehli mulakaat

Kabir aur Ravidas ji ki pehli mulakaat



Ik baar Kabir ardaas kari,

Ravidas ik jodi banao jutti.

Ravidas kahae Saheb mere,

Tum parson aake le jao jutti.


Kabir, Din paanch gaye aate jaate,

Ravidas nahi banai jutti.

Kahae Das Kabir Ravidas suno,

Ab tak tum kyon nahi banai jutti.


Kabir, Kayi baar arz main sarkaar kari,

Per Ravidas nahin banai jutti.

Bade logon se preet lga kar ke,

Garib ki dil se bhulayi jutti.


Kabir, Ab baat samajh me aayi mere,

Baaton se na banayi jaye jutti.

Hai mochi ka ye kanoon pakka,

Nahin karte shuru bin saayin jutti.


Kabir, Mujhe jaan ke muftkhor tu sun,

Mere sajna tu nahin banayi jutti.

Mera sahib janta hai bandeya,

Kabhi muft me nahin silaayi jutti.


Ravidas, Data tere didaar ki talab mujhe,

So, aap ki nahin banayi jutti.

Mere sahib aap se prem bada,

So, tum se paave badhai jutti.


Ravidas kahae mere yaar suno,

Maszid se koi uthayi jutti.

Log kahae bada zulam hua,

Kis be haya ne uthayi jutti.


Kabir, Saheb hans kar farmane lage,

Kisi garj wale ne uthayi jutti.

Shukr malik ka pair salamat hai,

Kya hua jo sirf churayi jutti.




Ravidas, In charan kamal ki thaah nahin,

Fir kis vidhi das banaye jutti.

Pooche Ravidas prabhu bhed kaho,

Kis kaam tumhare aaye jutti.


Kabir, Jutti bina das pareshan bada,

Nange pair ki khair manaye jutti.

Chotein seh ke jism apne pe,

Is das se preet nibhaye jutti.


Kabir, Pir faqiron ke tab pair chume,

Hasti apni jab matayi jutti,

Jo apni akad me firte the,

Sir pe usne fir khayi jutti.


Kabir, Ravidas Kabira ek hi hai,

Tin janeya jo dil se uthayi dooti.

Jin ke ander dil dui rahi,

Ve jam ke dwaar fir khayi jutti.


Kabir, Jutti paake paayi izzat hai,

Manzil der manzil paayi jutti.

Jab ishq kiya us saheb se,

Mere daata ne kadam sajayi jutti.


Kabir, Ik baar saheb ne apne hath,

Faqir ko ek pehnayi jutti.

Khusro zara iska mol bata,

Saare saal ki hai ye kamayi jutti.


Kabir, Khusro aath kataar oonth deke,

Faqir se jo fir laayi jutti.

Khusro pesh hue jab guru aage,

Badi sasti layi mere saayin jutti.


Kabir, Prabhu Ram Ji jab vanvaas gaye,

Bharat ne kaha do bhai jutti.

Charno me baith ke arz kari,

Bade bhai ki sar pe sajai jutti.


Kabir, Raah me kuch log mile,

Poocha kaahe sir pe rakhayi jutti.

Prem bhare Bharat kehne lage,

Mere daata ne ki sakhayi jutti.

Kabir, Mere bhai ise tum pag dharo,

Ae deewane kyon seesh uthayi jutti.

Izzat iski mera dil jaane,

Mere mehboob ne charan chuayi jutti.


Kabir, Kisi garoor wale bande ne jab,

Thokar maar ke door bagayi jutti.

Jutti bole tu hosh sambhal bandeya,

Apni khaal se nahi rangayi jutti.


Kabir, Samae badalta hai sabka,

Kahin fati to kahin navaayi jutti.

Kahin pair to kisi ke sir padti,

Kabhi karti nahin rihayi jutti.


Kabir, chori kar ke chor chup jaate,

Hath leke daud lagayi jutti.

Chor yaar ke sath tayiaar har dam,

Har ameer gareeb satayi jutti.


Kabir, Kaala muh karke jab gadhe baitha,

Gal me fir pehnayi jutti.

Chor kad ke tab maal pesh kiya,

Thanedaar ne jab mangaayi jutti.


Kabir, Sasuraal ke palang pe duhla baitheya,

Mil ke saaliyaan fir uthaayi jutti.

Mushkil hove to vi saath deve,

Bichu saamp ke sir dabayi jutti.


Kabir, Teri jutti ka hai maan bda,

Is kaaran paayi hai badhayi jutti.

Mere aajeez sun Ravidas mere,

Kabir pehne teri banayi jutti.


Kabir, Pehle chamakti hai fir toot jaati,

Maut zindgi yaad karayi jutti.

Jutti vaste sun mere Raidasa,

Tujhe Das Kabir sunayi jutti.


Ravidas, Kahae Ravidas mere hazoor suno,

Meri aatma deyi jagayi sutti.

Aankh aansoo leke sant kaheya,

Mere chaam ki aaj banayi jutti.


Ravidas, Mere daata ne aaj reham kiya,

Mere dil me ki rosnaayi jutti.

Ravidas Kabira ek hi hai,

Mere dil se dui mitayi jutti.



- Sain Sardar Kalam

Wednesday, 5 March 2025

Words Sikh and Khalsa first coined by Kabir and Ravidas

Kabir first of all coined word Sikh

Ravidas first of all coined word Khalsa
कहे रविदास खलास चमारा, जो हम शहरी सो मीत हमारा